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विशेषज्ञ लेख
धनिया की खेती - किसानों के लिए लाभदायक विकल्प

भारत वर्ष में धनिये की खेती बहुतायत में की जाती है, विश्व में भारत धनिये की खेती में चौथे नंबर का उत्पादक और उपभोगता देश है, धनिये की खेती इसकी पत्ती और बीजो दोनों के लिए की जाती है, जिसका उपयोग मसाला फसलों के रूप में किया जाता है। भारत में मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक और उत्तर प्रदेश में धनिये की खेती सबसे अधिक की जाती है।

सामान्यतः इसकी हरी पत्तियों को बाजार में बेच कर किसान एक एकड़ से रोजाना ६०० - १५०० रुपये कमा सकते है, और यह फसल ४०-५५ दिनों में तैयार हो जाती हैं, किस्मो के आधार पर समय भिन्न हो सकता है, साथ ही किसान धनिये के बीजों को भी बाजार में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है, धनिये के बीज १००-१२० दिनों में तैयार हो जाते हैं, सिचाई सुविधा के साथ ७ से ९ क्विंटल बीज तथा ५०-८० क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित अवस्था में ३ से ५ क्विंटल उपज प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है, जिसका बाजार मूल्य ७५००-१२००० तक हो सकता है।

धनिया के प्रकार

धनिया के प्रकार

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धनिया की फसल को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:-

1.सिर्फ पत्तियों के लिए की जाने वाली किस्मे आरसीआर ४१, गुजरात धनिया

2.सिर्फ बीजो के लिए की जाने वालो किस्मे आरसीआर २० , स्वाति, साधना आदि

3.कुछ किस्मे ऐसी होती है, जिसे पत्तिया और बीज दोनों का उत्पादन लिया जा सकता है, जैसे पूसा ३६०, पंत धनिया , सिंधु जिसे २ से ३ बार पत्तियों की तुड़ाई के बाद बीज बनने के लिए छोड़ दिया जाता हैं।

4.बहुतायत (मल्टीकटिंग) धनिया इसकी विशेष सुगंध, बड़ी चौड़ी चमकदार पत्तियों के लिए जाना जाता है, सामान्यतः ये जीवाणु से होने वाली अंगमारी बीमारी के प्रति सवेंदशील होता हैं, इसलिए इसकी मांग बढ़ रही है, और ये किस्म लोकप्रिय हो रही हैं, हाल ही में इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर रिसर्च सेंटर ने अरका ईशा नामक किस्म विकसित की है, और पंजाब कृषि विशवविद्यालय द्वारा सुगंध नामक मल्टीकट किस्म विकसित की हैं।

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मल्टीकट धनिया की मुख्य विशेषताएं

मल्टीकट धनिया की मुख्य विशेषताएं

● अधिक उपज, कम से कम तीन बार कटाई की जा सकती हैं।

● पौधे झाड़ीदार होते हैं, पत्तिया चौड़ी और डंठल छोटे होते हैं।

● पुष्पन देरी से होता हैं लगभग ५० दिनों के बाद

● पहली कटाई ४० दिन बाद और बाद में हर 15 दिन के अंतराल पर कटाई करें।

● बुवाई के ४० दिन बाद प्रति एकड़ १० - १५ क्विंटल उपज और तीन बार कटाई के बाद ३० क्विंटल उपज ली जा सकती हैं।

● पत्तियों में नमी ८२.४ %, कुल घुलनशील ठोस १७.६ % और विटामिन सी १६७.०५ मिलीग्राम प्रति १०० ग्राम पाई जाती हैं।

● पत्तियों में अच्छी सुगंध और तेल की मात्रा ०.०८३ % तक होती हैं।

● पॉलीथीन बैग में संग्रहित किए बिना पत्तियों की सुगंध और गुणवत्ता कमरे के तापमान पर ३ दिन, और कम तापमान पर 3 सप्ताह तक बनी रहती हैं।

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बुवाई का समय

बुवाई का समय

वैसे धनिये की खेती पुरे वर्ष की जाती है, जो किसान बीजो के लिए खेती करना चाहते है उन्हें ठण्ड के मौसम में बुवाई करना चाहिए ,और जो किसान पत्तिओ के लिए खेती कर रहे है, वो सिंचाई सुविधा के साथ मार्च से सितम्बर के बिच बुवाई कर सकते है, गर्मी के मौसम में घनिया पत्ती का भाव सब से अधिक मिलता हैं।

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भूमि की तैयारी और उर्वरक की मात्रा

भूमि की तैयारी और उर्वरक की मात्रा

यदि खेत में जल निकास की अच्छी सुविधा है तो दोमट मिट्टी और यदि खेती वर्षा जल पर आधारित है तो काली भारी मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है, बुवाई के पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए और साथ ही २ से ३ टन प्रति एकड़ अच्छे से अपघटित गोबर खाद मिला लें। अगर खेती सिंचाई सुविधा के बिना की जा रही है तो २० किग्रा नाइट्रोजन, १० किग्रा सल्फर , १० किग्रा पोटाश का उपयोग आधार रूप में करें,अगर खेती के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध है तो ३० किग्रा नाइट्रोजन, १० किग्रा सल्फर , १० किग्रा पोटाश का उपयोग अंतिम जुताई के साथ करे।

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बुवाई की विधि

बुवाई की विधि

धनिये की बुवाई सीधे खेतो में की जाती है, लेकिन बुवाई से पहले बीज को पानी में डूबा कर रखना चाहिए, उसके बाद कार्बेंडाजिम से बीजो को निर्देशित मात्रा के साथ बीज उपचार करना चाहिए ।

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सिंचाई सुविधा होने पर बीजो को १-२.५ से.मी. की गहराई में और सिंचाई सुविधा नहीं होने पर ५ से ७ से. मी.की गहराई में बुवाई करना चाहिए, पंक्तियों के बिच २५-३० और पौधो के बिच ४ -१० से मी की दुरी रखना चाहिए, बुवाई के समय ३ से ५ दिनों के अंतराल से क्यारियों में बुवाई करे, इस अन्तराल से किसान हर दिन फसल की कटाई कर सकते है।

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खरपतवार प्रबंधन

खरपतवार प्रबंधन

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बुवाई के २५-३५ दिनों के बाद खेत की निदाई गुड़ाई हाथो से करें और खरपतवार नियंत्रित करें।

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रोग एवं कीट प्रबंधन

रोग एवं कीट प्रबंधन

माहु:- धनिये की फसल में रस चूसक किट का प्रभाव सब से अधिक होता है, एफिड (माहु ) पौधो के सभी कोमल भाग से रस चूसते हैं, जिसे फसल की गुणवक्ता खराब हो जाती हैं, इसके निवारण के लिए अनुशंसित कीटनाशको का निर्देश अनुसार उपयोग करे।

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चूर्णिल आसिता :-

चूर्णिल आसिता :-

वो किसान जो मुख्यतः खेती पत्तियों के लिए कर रहे होते है, उनका इस रोग से बहुत आर्थिक नुकसान होता हैं, और इसे पत्ती की गुणवक्ता ख़राब हो जाती है. इसके रोकथाम के लिए बीज उपचारित करके बुवाई करे और एजॉक्सिस्ट्रोबिन जैसे कीटनाशको का 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करें।

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कटाई

कटाई

बीज के प्रकार के आधार पर लगभग ३० -४० दिनों में फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है, फसल के ६ -१० इंच की ऊंचाई होने पर कटाई की जा सकती है, बाजार की मांग के अनुसार फसल की कटाई और आपूर्ति कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता हैं , मसाला उधोग के आलावा सौन्दर्य सामग्री बनाने के लिए इसके तेल का भी उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तिओं को बेच कर ६०- १२० रुपए प्रति किलो और बीजो को १२० -२०० प्रति किलो और तेल द्वारा १२००-१५०० रुपये प्रति किग्रा मुनाफा लिया जा सकता हैं।

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बुवाई का समय

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