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विशेषज्ञ लेख
सहजन की फसल की खेती-किसानों के लिए लाभदायक अवसर

आजकल सहजन के पत्ते, बीज, फल्ली , फूल और जड़ का प्रयोग बहुत से लोग करते हैं। सहजन की फल्ली बहुत पौष्टिक होती है, विटामिन ए और सी, आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। यह त्वचा को स्वस्थ और नर्म और हड्डियों को मजबूत बनाते है। सहजन के पेड़ को घरेलू फसल के रूप में भी उगाया जाता है। सहजन में विटामिन सी, बी5, मैंगनीज और मैग्नीशियम भी होता है।

सहजन की फसल गर्म और आर्द्र जलवायु में उगती है I. सहजन में फूल आने के लिए २५ से ३० डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है।

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भूमि की तैयारी

भूमि की तैयारी

बड़े पैमाने पर खेती करने के लिए सबसे पहले जमीन की जुताई करना जरुरी होता है। बीज या पौधे लगाने से पहले लगभग ५० सेमी गहरा और चौड़ा गड्ढा खोदें। बीज या पौधे गड्डे के बिच में लगाए जिसे जड़ों के आसपास नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी और पौधे तेजी से बढ़ेंगे, गड्ढे को भरने के लिए गड्ढे के चारों ओर ऊपर की मिट्टी में ५ किलो प्रति गड्ढे की दर से कम्पोस्ट खाद, गोबर की खाद का प्रयोग करें।

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रोपण

रोपण

सहजन की फसलों को सीधी बुवाई या कलमों द्वारा लगाया जा सकता है।

सहजन की फसल में सीधी बुवाई

सहजन की फसल में सीधी बुवाई

यदि सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो तो रोपण के लिए पहले गड्ढा तैयार करें, और सिंचाई करें और फिर बीज बोने से पहले गड्ढे को खाद या खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर दे । बड़े खेतों में पेड़ सीधी पंक्ति में बारिश के मौसम की शुरुआत में लगाए जा सकते हैं।

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कलम से पौधे तैयार करना

कलम से पौधे तैयार करना

कलम से पौधे तैयार करने के लिए द्रढ़ (मोटी) लकड़ी का प्रयोग करें, न की सिर्फ हरी लकड़ी का, कलम ४५ सेमी से १.५ मीटर लंबी और १० सेमी मोटी होनी चाहिए। कलम को सीधे नर्सरी में या बैग में लगाया जा सकता है, सीधे रोपण करते समय, हल्की रेतीली मिट्टी का उपयोग करे, लंबाई का एक तिहाई भाग मिट्टी में रोपें (अर्थात यदि कटिंग १.५ मीटर लंबी है तो ५० सेमी की गहराई तक लगाएं)। ज्यादा पानी न डालें; यदि मिट्टी बहुत भारी या गीली होगी तो जड़ें सड़ जाएंगी।

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सहजन की लोकप्रिय किस्मे

सहजन की लोकप्रिय किस्मे

भारत में रोहित 1, पीकेएम 1, पीकेएम 2, कोयंबटूर 1, धनराज, भाग्य (केडीएम-01), कोयंबटूर 2 लोकप्रिय हैं।

रोपण के लिए उचित दुरी

रोपण के लिए उचित दुरी

सहजन के गहन उत्पादन के लिए रोपण ३ मीटर की दुरी पर किया जाना चाहिए। पर्याप्त धूप और वायु प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए पूर्व-पश्चिम दिशा में पेड़ लगाने की भी सिफारिश की जाती है।

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सिचाई प्रबन्धन

सिचाई प्रबन्धन

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सहजन के पेड़ों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। बहुत शुष्क परिस्थितियों में, पहले दो महीनों तक नियमित रूप से पानी दें, उसके बाद यदि पेड़ सूखने लगे तो ही पानी दे, पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध होने पर सहजन के पौधे फूल और फल्ली उत्पन करने लगते है, यदि वर्षा पुरे वर्ष होती है तो सहजन से पुरे वर्ष फल प्राप्त किये जा सकते हैं।

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उर्वरक प्रबंधन

उर्वरक प्रबंधन

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सहजन के पेड़ बिना ज्यादा खाद डाले भी अच्छी तरह से विकसित होते है, रोपण के ८ से १० दिन पहले हर गड्ढे में ८ से १० किग्रा गोबर की खाद और २० किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रति एकड़ डालना चाहिए। सहजन की खेती में फसल के लिए हर छह महीने के अंतराल पर उर्वरक की उसी मात्रा का उपयोग करना चाहिए जो रोपण के समय उपयोग की गई थी।

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कीट प्रबंधन

कीट प्रबंधन

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सुंडी

सुंडी

बरसात के मौसम में होने वाली पत्ती खाने वाली सुंडी और बालों वाली सुंडी पत्तियों को नष्ट कर देती है। कीटों के प्रबंधन के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग उपयोग करना चाहिए।

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फुदका और घुन

फुदका और घुन

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यह कीट रस चूसता है और शहद जैसे पदार्थ छोड़ता है। इस कीट के प्रबंधन के लिए खेत में पिले चिपचिपे जाल लगाए जाने चाहिए।

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छाल खाने वाली सुंडी

छाल खाने वाली सुंडी

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इसे यांत्रिक विधि से नियंत्रित किया जा सकता है,इसलिए लोहे की छड़ या डामर या कपास की गेंद बना कर पेट्रोल से भिगो कर सुबह या शाम के समय किया इस्तेमाल करना चाहिए।

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छंटाई

छंटाई

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जब पौधा एक मीटर तक पहुँच जाता है, तो अच्छी उत्पादकता और उपज प्राप्त करने के लिए छंटाई की आवश्यकता होती है। प्रत्येक पौधे को उचित सहारा दिया जा सकता है। पहली छंटाई रोपण के २ महीने बाद या जब पेड़ एक मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाए तब कि जानी चाहिए।

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कटाई

कटाई

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भोजन में उपयोग के लिए फलियों की कटाई तब करे जब वे छोटी (लगभग १ सेमी व्यास) हो तब करना चाहिए, पुरानी फल्ली बाहर से सख्त हो जाती है, लेकिन सफेद बीज पकने की प्रक्रिया शुरू होने तक खाने योग्य रहते हैं। रोपण के लिए या तेल निकालने के लिए बीज तैयार करते समय, फल्ली को सूखने दें और फल्ली को भूरा होने दें। कुछ मामलों में, शाखा को टूटने से बचाने के लिए कई फल्ली धारण करने वाली शाखा को ऊपर उठाना आवश्यक होता है। फल्ली को अंकुरित होने से पहले काट लें, जिसे बीज जमीन पर ना गिरें। बीजों को शुष्क, छायादार स्थानों में वायुरोधी थैलियों में संग्रहित किया जा सकता है।

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उपज

उपज

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यह मूल रूप से उगाए गए बीज के प्रकार/किस्म पर निर्भर करता है। उपज लगभग २० - २५ टन फली प्रति एकड़ (१५० फली प्रति पेड़ प्रति वर्ष) हो सकती है।

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