

कटाई के बाद पौधों के जो भाग खेतो मे बच जाते है,( भूसा ) उन्हे या भूसे को फसल अवशेष के रूप में जाना जाता है। फसल अवशेष कोई अपशिष्ट पदार्थ नहीं होता क्योंकि इसमें पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सल्फर, आर्गेनिक कार्बन इत्यादि का भंडार होता है, और यदि उचित प्रकार से योजना बनायी जाये तो यह मुनाफ़ा भी कमा सकते हैं। जागरूकता की कमी के कारण, कई किसान आसानी से भूसे से छुटकारा पाने के लिए और अगली फसल के लिए अपने खेतों को तैयार करने के लिए फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं। लेकिन यह बहुत गलत आचरण है।
अवशेष ( भूसे ) को जलाने की वजह से यह वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैस की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होतीं हैं क्योंकि यह श्वसन और त्वचा रोगों का कारण होतीं हैं, ये वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं तथा ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण हैं। फसल अवशेष के जले हुए अवशेष मिट्टी की उर्वरता को कम कर देते हैं क्योंकि ऊपरी मिट्टी के पोषक तत्व खो जाते हैं। यह मिट्टी के लाभकारी कीड़ों, केंचुओ तथा सूक्ष्म जीवों को मार देते हैं। यह मिट्टी की जल ग्रहण क्षमता को भी कम कर देता है।

प्रबंधन:
प्रबंधन:
फसल अवशेषों के कई प्रकार के उपयोग हैं।


सबसे अच्छा तरीका है फसल कटाई के बाद एक बार खेत में हल चला कर तथा भूसे को पुनः मिट्टी में बदल दिया जाये। इस प्रकार से मिट्टी में नमीं बनी रहेगी तथा उर्वरता बढ़ जाएगी। यह अगली फसल के लिए सिंचाई तथा उर्वरता की अधिक आवश्यकताओं को कम करता है।
चॉपर का इस्तेमाल भूसे को छोटे टुकड़ों में काटने के लिए किया जा सकता है जिसे खेत में मिलाया जा सकता है। अगली फसल के बीजों की बुवाई जीरो टिलेज मशीन या हैप्पी सीडर का उपयोग करके की जा सकती है ताकि खेत में पिछली फसल के खड़े होने के साथ बुआई की जा सके। भूसे को खेत के कोने में इकट्ठा किया जा सकता है तथा खाद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
थोड़े यूरिया के घोल या गाय के गोबर के साथ केंचुओ और ट्राइकोडर्मा को मिला कर इसको गति को बढ़ाया जा सकता है। भूसे को मिट्टी में नमीं बनाए रखने तथा खरपतवार को कम करने के लिए पलवार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
भूसे को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कई उद्योगों जैसे कागज उद्योग, पैकेजिंग उद्योग (फल/चश्मे आदि), ईंट भट्ठों, विद्युत उत्पादन के लिए बायोमास विद्युत संयंत्रों, बायोगैस उत्पादन, मशरूम उत्पादन आदि में भी भूसे की आवश्यकता होती है। बेलर मशीन का इस्तेमाल किया जा सकता है, यह एक ट्रैक्टर माउंटेड मशीन है जो भूसे को काटता है और इसके बंडलों को गांठें कहते हैं। इन गांठों को फिर आसानी से आवश्यकता वाले स्थानों पर ले जाया जाता है। बेलर 10-15 मिनट में एक हेक्टेयर क्षेत्र के भूसे को साफ़ कर सकता है। कुछ कम्पनियां किसान के खेतों से भूसा लेने के लिए अपनी मशीनरी का उपयोग करतीं हैं।
मशीनों के उपयोग के लिए वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है जिसके लिए भारत सरकार द्वारा जीरो तक फर्टी सीड ड्रिल, हैप्पी सीडर, बेलर, चॉपर, रोटावेटर, रीपर आदि जैसी मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान की जाती है। लाभ प्राप्त करने के लिए किसान अपने-अपने जिलों के निकटतम कृषि विभाग कार्यालयों से संपर्क कर सकते हैं।
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