

भारत में धान की सीधी बुवाई कई क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही है। इसलिए हम किसानों के लाभ के लिए भूमि की तैयारी और जल्दी फसल तैयार करने की महत्वपूर्ण जानकरी दे रहे हैं।
बुवाई का समय
बुवाई का समय
• खरीफ के मौसम के लिए जून से जुलाई के महीने में मानसून की शुरुआत के तुरंत बाद बुवाई की जानी चाहिए।
• रबी के मौसम के लिए नवंबर-दिसंबर में बुआई की जानी चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई की विधि
सीधी बुवाई चार प्रकार की होती हैं:
• गीली सीधी बुवाई: लाइचोपी
• सूखी सीधी बुवाई: ट्रैक्टर से चलने वाली सीड ड्रिल (तार वातर) से बुवाई
• सूखी सीधी बुवाई: बोटा
• सूखी सीधी बुवाई: खुर्रा
गीली सीधी बुवाई: लाइचोपी
गीली सीधी बुवाई: लाइचोपी
• भूमि को पर्याप्त रूप से जोता जाता है, बोने से पहले खेत को पट्टा चलाकर समतल कर लें।
• बुवाई से पहले, उर्वरक की आधारीय मात्रा (एनपीके १०:१००:७५ ) का उपयोग करे और एक बार फिर से खेत को समतल करें।
• खेतों से पानी निकाल दें,और फिर पूर्व-अंकुरित बीजों के साथ समान रूप से एक लाइन में बीजों को बिखेरें/ लगा दे।


सूखी सीधी बुवाई: ट्रैक्टर से चलने वाली सीड ड्रिल (तार वातर) से बुवाई
सूखी सीधी बुवाई: ट्रैक्टर से चलने वाली सीड ड्रिल (तार वातर) से बुवाई
• पिछली फसल की कटाई के बाद दोबारा खेत की तैयारी के लिए खेत की २ -३ बार जुताई (हैरोइंग) करें।
• बुवाई के पहले अच्छी तरह से सिंचाई करें, जब मिट्टी अपनी उच्च क्षमता तक पहुंच जाये, तब एक हलकी जुताई करें और उसके बाद पाटा चला कर खेत समतल करे।
• १० किग्रा संकर बीज + ३० किग्रा डीएपी मिलाकर गेहूं की तरह ६०-७०% मिट्टी में नमी रखकर ट्रैक्टर चालित बीज ड्रिल के साथ बीज बोएं।
• बोने के बाद बीज अपने आप ढक जाते हैं
• ५-७ दिनों के बाद पंक्तियों में इष्टतम अंकुरण देखा जा सकता है।


सूखी सीधी बुवाई: बोटा
सूखी सीधी बुवाई: बोटा
• अच्छी जमीन तैयार करने के लिए गर्मियों के दौरान भूमि की पर्याप्त गहरी जुताई करे, मौसम से पहले खरपतवार को हटाकर खेत को समतल कर लें।
• मानसून की शुरुआत के बाद खेत की जुताई करे, और अंत में बीज की बुवाई करे।
• मिट्टी में नमी 60-70 प्रतिशत होने पर ब्रॉडकास्टिंग/सीड ड्रिल के माध्यम से बीज की बुवाई करे।
• उचित अंकुरण और पक्षियों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए बीजों को हैरो विंग (मिट्टी चढ़ा दे) से ढक दें।


सूखी सीधी बुवाई: खुर्रा
सूखी सीधी बुवाई: खुर्रा
• मानसून की शुरुआत से पहले खेतों को तैयार करें।
• मानसून की शुरुआत से १५ दिन पहले सूखी मिट्टी में बीज बोया जाता है।
• उचित अंकुरण और पक्षी की क्षति से बचने के लिए बीजो को हैरो से ढक दें।
• इस विधि में, संकर किस्मों की अनुशंसा नहीं की जाती है।


खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन
अंतर खेती खरपतवार प्रबंधन के लिए सहायक होती है और जड़ों के बेहतर विकास के लिए मिट्टी को ढीला करने में भी सहायक होती है। लेकिन निराई गुड़ाई प्रारम्भिक जुताई से अधिकतम कल्ले निकलने की अवस्था तक करनी चाहिए।
निराई गुड़ाई 3 तरीकों से की जाती है
• हाथो से /मैनुअल निराई गुड़ाई
• मशीन द्वारा: प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथो से या मशीन संचालित (कोनो-वीडर) का इस्तेमाल कर के कर सकते है ।
• रसायन द्वारा: अनुशंसित खरपतवारनाशकों का प्रयोग करें।
• बुवाई के ०-३ दिनों के अंदर पूर्व-उभरती खरपतवार नियंत्रित करने के लिए पेंडीमिथालिन/प्रीटिलाक्लोर जैसे शाकनाशी का प्रयोग करें।
• बुवाई के ८ - १५ दिनों के बाद जब खरपतवार १ – ३ पत्तों वाली अवस्था में हों, तब कॉउन्सिल एक्टिव ९० ग्राम प्रति एकड़ १५० लीटर पानी के साथ खरपतवार के अंकुरण के शुरवाती चरण में उपयोग करे। यह चौड़ी पत्ती वाली घास जैसे खरपतवारों को नियंत्रित करने और सेज को प्रबंधित करने में मदद करता है
• बचे हुए खरपतवारों के लिए खरपतवार के प्रकार के आधार पर शाकनाशी का दूसरी बार उपयोग करें।


सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग
सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग
जिंक:
लक्षण:
• चावल: रोपाई के २-३ सप्ताह के बाद से पुराने पत्तों पर ज़ंग लगे-भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं और पुराने पत्तों का रंग उड़ जाता है। अधिक तीव्र प्रभाव होने पर पुरानी पत्तियों के किनारे सूख जाते हैं, और नए पत्ते उस समय आकार में छोटे होते हैं, जिसे फसल की परिपक्वता असमान और विलंबित होती है।
• यदि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दें तो जिंक सल्फेट ०.५% के घोल के कम से कम छिड़काव पत्तियों पर करें।


लोहा तत्व की कमी
लक्षण:
• पत्तियों की शिराओं के बीच हरित हीनता दिखाई देती है, पत्तियों का सिरे किनारो की और से सूखने लगते है, गंभीर परिस्थितियों में, पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं और मर जाती हैं।
• यदि मुख्य फसल में आयरन की कमी के लक्षण दिखाई दें तो फेरस सल्फेट १% का २-३ छिड़काव तब तक करें ,जब तक कि पत्तियों का रंग सामान्य हरा न हो जाए।


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