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फूलों की खेती, गेंदे की खेती से होगा अच्छा मुनाफा
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फूलो की खेती की तकनीक

फूलो की खेती की तकनीक

फूलो की खेती दो प्रकार से की जाती है, पहली जिसमे खुले खेत में अन्य फसलों की तरह फूलो के पौधे लगाए जाते है और दूसरी संरक्षित खेती की तकनीक जिसमें ऐसा वातावरण कृतिम रूप (पॉलीहाउस) से तैयार किया जाता है जिसे फसल को फायदा होता है। संरक्षित खेती में किसान पौधों के अनुसार वातावरण में बदलाव कर सकते हैं और बदले हुए वातावरण में सालभर बेमौसमी फूलों और सजावटी पौधों आदि का उत्पादन कर सकते हैं। संरक्षित खेती का मुख्य उदेश्य फसल को जैविक और अजैविक कारकों से बचाना भी है, जिसे दवा और खाद दोनों के खर्च में कमी आती है और लाभ बढ़ता है, यदि किसान पॉलीहाउस में फूलो की खेती करते है तो टपक सिंचाई स्थापित कर सकते है जिसे पानी की कमी की समस्या और गर्मी दोनों का हल मिल जाता है, साथ ही खाद और उर्वरक की भी कम आवश्यकता होती है।

खुले में खेती करने के कुछ जैविक और अजैविक खतरे होते हैं, जो फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। जैविक खतरे में पौधों को कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है। वहीं अजैविक खतरों में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान, बहुत ज्यादा गर्मी, बरसात का न होना या बाढ़ जैसी स्थिति शामिल हैं, जो हमारी फसलों को प्रभावित करती है। इन तमाम कारकों से किसानों की कमाई घट जाती है।

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भारत मे गेंदें की प्रचलित व उन्नत किस्में

भारत मे गेंदें की प्रचलित व उन्नत किस्में

1 अफ्रीकन गेंदा : - इसके फूल बड़े गठीले पिले, सुनहरे पिले से नारगी रंग के होते है जो वर्ष भर फूल देते है, यह किस्म बुआई के 90-100 दिनों में फूल देना प्रारंभ कर देती है। पौधों की ऊंचाई 75-85 सें. मी. तक होती है।

2 फ्रेंच गेंदा:- फ्रेंच गेंदा क्रमशः बीज बोने के 75-85 दिन बाद फूलने लगता है, इसके पौधे अनेक शाखाओं से युक्त लगभग 1 मीटर तक ऊँचे होते हैं, इनके फूल गोलाकार, बहुगुणी पंखुड़ियों वाले तथा पीले व नारंगी रगं का होता है। बड़े आकार के फूलों का व्यास 7-8 सेमी. होता है।

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3 पूसा संतरा:- यह किस्म लगाने के 123-136 दिन बाद फूल लगता है. फूल का रंग सुर्ख नारंगी रंग का होता है और लंबाई 7 से 8 सेमी. के बीच का होता है. उपज औसतन प्रति हेक्टेयर 35 मी. टन/हेक्टेयर है.

4 पूसा बसंती:- यह किस्म 135 से 145 दिनों में तैयार हो जाती है। फूल पीले रंग का होता है, और व्यास 6 से 9 सेंटीमीटर का होता है।

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गेंदे की खेती के लिए खेत कैसे तैयार करें

गेंदे की खेती के लिए खेत कैसे तैयार करें

गेंदे की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन 7.0 से 7.6 के बीच पीएच मान वाली अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है। भूमि तैयार करते समय गहरी जुताई करें तथा जुताई के समय जमीन में 15-20 टन सड़ा हुआ गोबर या कम्पोस्ट मिलाकर खेत को समतल बना लें। छह बोरी यूरिया, 10 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट और तीन बोरी पोटाश प्रति हेक्टेयर खेत में मिला दें. यूरिया को तीन बराबर भागों में बाँट लें तथा सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपण के समय दें। यूरिया की दूसरी और तीसरी खुराक रोपाई के 30 और 45 दिन बाद पौधों के चारों ओर कतारों के बीच में दें। कृपया ध्यान दें कि इसकी खेती के लिए सूरज की रोशनी बहुत जरूरी है।

किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने और उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर एज़ोटोबैक्टर, एज़ोस्पिरिलम आदि जैव उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। जैव उर्वरक के प्रयोग से लागत भी कम आती है।

अगर आप पहली बार बगीचा तैयार कर रहे हैं तो बीज की जगह नर्सरी से तैयार पौधे लगाना बेहतर है।

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पौधे कैसे तैयार करे

पौधे कैसे तैयार करे

वैसे किसान खुद भी पौधो की नर्सरी तैयार कर सकते है, एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 600-800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। जो 100 से 1500 प्रति पैकट होता है, बारिश के मौसम में इसकी बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई में करें। सर्दियों में इसकी बिजाई मध्य सितंबर से मध्य अक्तूबर में पूरी कर लें। नर्सरी बैड 3x1 मीटर आकार के तैयार करें या ट्रे का उपयोग करे जिसमे गोबर खाद और मिट्टी या कोकोपिट का उपयोग करे, बीजों को अंकुरित होने में लगभग 5 से 10 दिन लगते हैं, और पौधे 15 से 20 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते है। लेकिन यदि आप तैयार पौधे लेते है तो समय की बचत होती है, और स्वस्थ पौधे मिल जाते है सामान्यतः एक पौधा 4 से 10 रूपये तक हो सकता है।

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पौधारोपण

पौधारोपण

रोपाई शाम के समय करें,अफ्रीकन गेंदा को 45 * 45 सेमी की दूरी पर लगाएं। एक हेक्टेयर में रोपाई करने पर 50 से 60 हजार पौधे की जरूरत होगी।

इसी तरह फ्रेंच गेंदे को 25 *25 पौधे से कतार एवं कतार से कतार की दूरी पर रोपे। इसमें प्रति हेक्टेयर डेढ़ से दो लाख पौधें की जरूरत पड़ती है और रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

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सिंचाई

सिंचाई

सिंचाई मौसम पर अधिक निर्भर करती है, गेंदे के पोधो को अधिक नमी की आवश्यकता नहीं होती बेहतर जल निकासी होने पर गर्मी के दिनों में 7-8 दिन के अंतराल से तथा सर्दियों में 11 -14 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।

गेंदे के पौधे कमजोर तने वाले होते है, इसलिए इन्हे सहारा देना आवश्यक होता है और समय समय पर मिट्टी चढ़ाना भी जरुरी होता है।

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खरपतवार प्रबंधन

खरपतवार प्रबंधन

बारिश और ठण्ड में गेंदे की फसल में खरपतवार बड़ी समस्या होती है, जो सीधे उपज पर प्रभाव डालती है इसलिए समय पर आवश्यकता अनुसार हाथो से या उचित खरपतकार नाशक का उपयोग कर इसका नियत्रण जरूर करे।

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रोग और कीट प्रबंधन:-

रोग और कीट प्रबंधन:-

वैसे गेंदे की फसल में यदि जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो और समय पर खरपतवार का नियंत्रण किया जाये तो किट एवं रोग की समस्या कम होती है। लेकिन कभी कुछ किट जैसे घुन या ऐफिड फसल को प्रभावित कर सकते है, जिसके नियंत्रण के लिए ओबेरोन, और कॉन्फिडर या कॉन्फिडर सुपर जैसे कीटनाशक का उपयोग निर्देशानुसार किया जा सकता है।

यदि फसल में पत्ता लपेटक या पॉवडरी फफूंद का प्रभाव दिखाई दे तो फफूंद के लिए एविएटर एक्सप्रो जैसे फफूंदनाशक का उपयोग निर्देशानुसार किया जाना चाहिए। यदि किसान चाहे तो नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी संपर्क कर सकते है।

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फूलों की तुड़ाई और मुनाफा

फूलों की तुड़ाई और मुनाफा

फूलों की तुड़ाई अच्छी तरह से खिलने के बाद करना चाहिए। फूल तोडऩे का सबसे अच्छा समय सुबह या शाम का होता है। फूलों को तोडऩे से पहले खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे फूलों का ताज़ापन बना रहता है। तुड़ाई के बाद यदि संभव हो तो फूलो को कागज से ढक दे जिसे उसकी नमी कम ना हो, एक एकड़ खेत में हर हफ्ते 3 क्विंटल तक फूल की पैदावार हो जाती है। खुले बाजार में इसके फूल की कीमत 70 -80 रुपए प्रति किग्रा तक मिल जाती है, यानी हर हफ्ते 20-25 हजार रुपए तक की आमदनी हो सकती है, साथ ही गेंदे की फसल को सब्जियों के साथ फसल चक्र में उगाने से सूत्र कृमियों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है, साथ ही इसमें कई औषधीय गुण होते हैं, इसलिए मेडिकल व्यवसाय और सौन्दर्य सामग्री बनाने वाली कंपनी में भी फसल की अच्छी मांग होती है

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