

मेंथा को कृषि क्षेत्र में नकदी फसल के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि इसका उपयोग दशकों से आयुर्वेद में विभिन्न दवाओं के लिए किया जाता है, इसलिए मेंथा ( पोदीना, पिपरमेंट ) की खेती कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड सहित भारत के कई क्षेत्रों में होती है। मेंथा उत्तर प्रदेश में बड़े क्षेत्रों में उगाया जाता है, लेकिन इसकी उच्च मांग के कारण कई क्षेत्रों में मेंथा की खेती लोकप्रिय हो रही है। मेंथा की उच्च मांग के कारण, कई कंपनियां इसकी खेती के लिए बीज, उर्वरक और अन्य सुविधाएं प्रदान करती हैं, और अच्छे दामों पर उपज भी खरीदती हैं।
दवा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन और खाद्य पदार्थों तक इसके उपयोग के कारण मेंथा तेल की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसके कारण किसानों को बहुत अच्छा मुनाफा हो रहा है, और भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है, विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान समय-समय पर मेंथा की खेती के लिए काम करते हैं और सरकार द्वारा मेंथा की खेती के लिए कई योजनाएँ बनाई जाती हैं, जिसका लाभ ले कर किसान अनुदान प्राप्त करके खेती कर सकते हैं।
मेंथा के प्रकार
मेंथा के प्रकार
भौगोलिक और वातवरणी परिस्तिथियों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में मेंथा की अलग अलग किस्मो की खेती की जाती है, जैसे जलीय मेंथा, बुद्धिया मेंथा, जापानी पुदीना और काला पोदीना, जिसमे सबसे अधिक पसंद की जाने वाली प्रजाति जापानी पुदीना है , जिसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश के कुछ भागो में बहुतायत में की जाती है, यह नमी वाले दलदली क्षेत्रों, घास के मैदान जिसमे जल निकास की वव्यस्था ठीक नहीं ऐसी परिस्तिथि में भी खेती की जा सकती है, इसकी उचाई १ मीटर तक होती है , पत्तिया अंडाकार थोड़ी लाल/ हरे रंग की होती है, सामान्य रूप से किसान को 1 एकड़ में 200 - 220 किलोग्राम उपज और 85-85 किलोग्राम मेंथा तेल प्राप्त होता है


जलवायु
जलवायु
मेंथा की खेती सभी प्रकार के वातावरण में की जा सकती है। सभी प्रकार का मौसम इसके लिए उपयुक्त माना जाता हैं।


भूमि
भूमि
हल्की दोमट , थोड़ी रेती वाली बलूई मिट्टी जिसमे जल निकास की व्वयस्था हो उपयुक्त होती है, कार्बनिक जीवाश्म वाली मिट्टी जिसका Ph ६ से ७ हो अच्छी उपज के लिए उपयुक्त होती है, बुवाई से पहले हल से गहरी जुताई करे, और दो बार आडा और तिरछा हल चलाए, जिसे मिट्टी भुरभुरी हो जाए जिसे पौधे की जड़े मिट्टी में ठीक से फ़ैल जाए।


खाद व उर्वरक
खाद व उर्वरक
उर्वरक का उपयोग करने से पहले मिट्टी की जाँच ज़रूर कर लें और हल चलाते समय मिट्टी में 100 किलोग्राम फार्म यार्ड खाद और 150 किलोग्राम एनपीके / एकड़ का उपयोग करें। कई क्षेत्रों में जस्ता की कमी आम है।इसलिए भूमि तैयार करते समय मिट्टी में 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट मिलाया जाना चाहिए।


रोपाई
रोपाई
मेंथा की रोपाई के लिए फरवरी के अंत से मार्च का समय उपयुक्त होता है, रोपाई के लिए बीज और सकर (तनो ) का इस्तेमाल किया जाता है, बुवाई के पहले इन्हे ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लेना चाहिए, यदि सीधे बुवाई की जा रही है तो पंक्ति से पंक्ति की दुरी ४ से ६ सेमी रखे और गड्डो की गहराई ३ सेमी से अधिक ना रखे रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।


खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण
मेंथा की खेती के लिए, बुवाई से पहले, मशीन या हाथो से खरपतवार हटा कर ही बुवाई करे, बुवाई के 30 दिनों बाद अनुसंशित खरपतवार नाशकों का छिड़काव करे,क्योकि मेंथा की फसल बहुत घनी होती है, इसलिए समय समय पर फसल का निरीक्षण करते रहना चाहिए और आवश्यक होने पर हाथो से निराई गुड़ाई कर हटा दे.


अंतर - फसल
अंतर - फसल
मेंथा की खेती अन्य फसलों के साथ भी की जा सकती है, जिसे किसान को अधिक लाभ मिल सकता है, मेंथा को खस की फसल के साथ बहुतायत में लिया जाता है क्यों की दोनों फसलों के परिपवक्ता में ९० - १२० दिनों का समय लगता है, और उर्वरको की आवश्यता भी समान होती है। इसके आलावा लहसुन की फसल के साथ भी मेंथा की खेती की जाती है, लहसुन की बुवाई नवम्बर में की जाती है और और दो माह बाद खेत की शेष जगह में मेंथा की रोपाई की जा सकती हैं, जिसे किसान को दोहरा लाभ मिलेगा, इसके साथ ही किसान गन्ने के साथ भी मेंथा की फसल लें सकते है।


रोग एवं नियंत्रण
रोग एवं नियंत्रण
पत्ती का धब्बेदार रोग
पत्ती का धब्बेदार रोग
यह फफूंदी जनित रोग होता है, जिसके लक्षण पत्ती के पीछे की और धब्बो के रूप में दिखाई देते है, जिसे पत्तिया पिली हो कर गिर जाती हैं, जिसके निवारण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, डाइथेन का निर्देशानुसार २० दिनों के अंतराल में छिड़काव करें।


चूर्णिल आसिता
चूर्णिल आसिता
यह एक कवक रोग है, जिसमें पौधे पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, पौधा कमजोर हो जाता है और मर जाता है, जिसकी रोकथाम के लिए उचित कवकनाशी का उपयोग किया जाना चाहिए।


कीटों का प्रकोप और नियंत्रण
कीटों का प्रकोप और नियंत्रण
रोयेंदार सुंडी
रोयेंदार सुंडी
सुंडी का प्रभाव ठन्डे क्षेत्रों में अधिक होता है, पिले भूरे रंग की ३ सेमी तक लम्बी सुंडी पोधो पर देखी जा सकती है जो पत्ती के हरे उत्तको को खा लेती है जिसे उपज पर प्रभाव पड़ता है, जिसके रोकथाम के लिए कृषि विशेज्ञ से परामर्श के बाद उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करें।


माहू
माहू
यह कीट शिशु पौधों पर आक्रमण कर पौधे से रस चूसता है। इस कीट का प्रकोप का अप्रैल - जून माह में अधिक होता हैं, जिससे पौधों का विकास रूक जाता हैं, क्षति को नियंत्रित करने के लिए, पर्ण उर्वरक का उपयोग करें।


कटाई
कटाई
मेंथा की फसल १०० से १२० दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है, मौसम और प्रकार के आधार पर फसल की कटाई २ से ३ बार की सकती है, सही समय पर फसल की कटाई ना होने पर पत्तियों में तेल की मात्रा कम हो जाती हैं, इसलिए फूल आने पर तुरंत पहली कटाई करे।


लाभ
लाभ
वैसे मेंथा की पत्तियों को सीधे बाजार में बेच कर भी किसान मुनाफा कमा सकते है, पर अधिक मुनाफा मेंथा का तेल बेच कर प्राप्त किया जा सकता हैं, सामान्यतः एक एकड़ से ८० से ८५ लीटर मेंथा तेल भाप विधि से प्राप्त किया जा सकता है, जिसका बाजार मूल्य १२०० से ४००० रूपए प्रति लीटर तक होता है, इसके अलावा साथ ही कई सौन्दर्य उत्पादक और दवा बनाने वाली कंपनी इसे सीधे किसानो से उचित दामों पर भी खरीद लेती है।


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