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विशेषज्ञ लेख
कैसे करें मशरूम की खेती? जानें सबकुछ

आज से कुछ समय पहले तक मशरूम की खेती का प्रचलन कम था, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में इसकी मांग बढ़ रही हैं, लेकिन मांग के अनुसार इसका उत्पादन कम हो रहा हैं, इसलिए मशरूम की खेती के लिए अब सरकार को अन्य संस्था द्वारा कई योजना और शिक्षा कार्यकम चालये जा रहे हैं, जिसे किसान इसका लाभ ले कर अपनी अतिरिक्त आय बड़ा सकते हैं, जो कम लागत में बड़ा मुनाफा दे सकते हैं, हाल समय में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महारष्ट्र मशरूम के सब से बड़े उत्पादक प्रदेश हैं।मशरूम को खुम्ब,खुंभी,कुकुरमुत्ता, आदि नामो से भी जाना जाता है।

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मशरूम उत्पादन के लिए उपयुक्त मौसम और प्रकार:-

मशरूम उत्पादन के लिए उपयुक्त मौसम और प्रकार:-

मांग और पौष्टिकता के अनुसार मशरूम की तीन सब से अधिक व्यापक किस्मे हैं,

1 बटन मशरुम,

2 ढिंगरी मशरूम

3 दूधिया (मिल्की) मशरूम

सितम्बर महीने से नवंबर तक ढ़िगरी मशरूम की खेती कर सकते हैं, इसके बाद फरवरी से मार्च माह तक बटन मशरूम की खेती की जा सकती हैं, और जून से जुलाई तक मिल्की मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, इस तरह से आप पुरे वर्ष मशरूम की खेती कर लाभ कमा सकते हैं, और इस खेती को किसान अपनी परम्परागत खेती के साथ कर सकते हैं।

मशरूम की खेती के लिए सभी प्रकार की जलवायु उपयुक्त होती है, और इसकी खेती छोटे कमरों से लेकर बड़े स्थानों तक की जा सकती है, मशरूम की खेती के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक बीज है, जिसे स्पॉन भी कहा जाता है, स्पॉन तैयार करने के लिए गेहूं के बीज सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं, इसके लिए अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं का उपयोग करें, अन्यथा मशरूम की गुणवत्ता खराब हो सकती है, शुरूवात करने के लिए स्पॉन किसी भी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था या किसी कृषि संस्थान से लिया जाना चाहिए, जिसकी कीमत ३० से लेकर ५० रुपये प्रति किलो तक होती है। इसके बाद दूसरी आवश्यक वस्तु प्लास्टिक की थैली है, जो १५*१६ होती है, जिसकी कीमत १२०० से १५०० रुपये प्रति 100 बैग तक होती है, उसके बाद आवश्यक घटक वातावरण ( परिस्तिथि) है, जिसमें मशरूम की खेती की जाती है, जिसके लिए गेहूं, चावल, राई कपास के भूसे आदि का प्रयोग किया जाता है।

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ढींगरी मशरूम की खेती

ढींगरी मशरूम की खेती

ढींगरी मशरूम (ओएस्टर मशरूम) जिससे इन कृषि अवशिष्टों को प्रयोग कर किसान अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकते हैं तथा इन कृषि अवशिष्टों का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग कर अपने खेतों की उर्वकता को बढ़ा सकते हैं। ढींगरी मशरूम की खेती हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु,केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुतायत से हो रही है। ढींगरी मशरूम की कुछ विशेषताएं हैं, जिसकी वजह से इसकी खेती भारत में ही नहीं अपितु विश्वभर में भी लोकप्रिय हो रही है। ढींगरी को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों परआसानी से उगाया जा सकता है, इसका फसल चक्र भी 45-60 दिन का होता है, और इसे आसानी से सुखाया जा सकता है।

भूसे को उपचारित करना

भूसे को उपचारित करना

मशरूम की खेती के लिए भूसे को उपचारित करना बहुत जरुरी हैं, उपयोग किये जाने वाले भूसे में किसी भी प्रकार के बक्टेरिया, सुष्म जिव नहीं होना चाहिए, भूसे को उपचारित करने की कुछ विधिया काफी प्रचलित हैं जिसमे सब से सामान्य गर्म पानी से उपचार करना हैं, एक बड़े बर्तन या ड्रम में पानी गर्म कर (50 - 60 C) पर 20 से 30 मिनट तक पानी में भूसा डालकर उसे उबाले फिर साफ पन्नी या लोहे की जाली पर फैला कर ठंडा करने के बाद स्पॉन मिलाये जाते हैं, यह सब से सस्ती और सरल विधि है।

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रासायनिक विधि

रासायनिक विधि

इस विधि में कार्बेण्डजीम और फोर्मलीन से भूसे को उपचारित किया जाता है. सबसे पहले 200 लीटर के ड्रम में 90 लीटर पानी डाला जाता है. इसके बाद कार्बेण्डजीम 7.5 ग्राम और फोर्मलीन 125 मिली दवा ड्रम में मिला दी जाती है, और लगभग 10-12 किलो सूखे भूसे को भी ड्रम में डालते हैं. इसके बाद ड्रम को प्लास्टिक की पन्नी से 14-16 घंटे के लिए ढक देते हैं. 14-16 घंटे बीत जाने के बाद भूसे को किसी प्लास्टिक या लोहे की जाली पर 2-4 घंटे तक डाल कर छोड़ देना चाहिए, ताकि अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए. फिर इस भूसे का उपयोग मशरूम की खेती के लिए किया जा सकता है।

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बुवाई करना

बुवाई करना

बुवाई के पहले जिस कमरे में मशरूम की थैली रखना हो उस कमरे को 2 प्रतिशत फार्मलीन से उपचारित कर लेना चाहिए. ५० किग्रा सूखे भूसे के लिए 5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है, ध्यान रहे बीज 20 दिन से ज्यादा पुराना न हो, सर्दी और गर्मी के अनुसार मशरूम की प्रजाति का चयन करना जरूरी रहता है.बीजाई करने के लिए 4 किलो की क्षमता वाली पोलिथीन की थैली में 4 किलो गीले भूसे में लगभग 100 ग्राम बीज अच्छी तरह से मिला कर भर दें, इस बात का ध्यान रखें कि थैली के अंदर हवा ना जाए. अब पोलिथीन को मोड़कर रबड़ बेंड से बंद कर दें. इसके बाद पोलिथीन के चारों और लगभग 5 मिमी. के 10-15 छेद कर दें.

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बुवाई के बाद रखरखाव

बुवाई के बाद रखरखाव

बीजाई करने के पश्चात् थैलियों को उपचारित किये गए कमरे में रख देना चाहिए, और 2 से 4 दिन बाद बेग का निरीक्षण करना चाहिए, अगर किसी बैग में हरा, काला या नीले रंग की फंफूद या मोल्ड दिखाई दे तो ऐसे बैगों को कमरे से निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए, अगर बैग तथा कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों तथा छत पर पानी का छिड़काव दो से तीन बार करे या कूलर का उपयोग करे।

इसका ध्यान रखना चाहिए कि बैगों पर पानी जमा न हो। लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जायेगा तथा बैग सफेद नजर आने लगेंगे। इस स्थिति में पाॅलीथीन को हटा लेना चाहिए। गर्मियों के दिनों में (अप्रैल-जून) पाॅलीथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए क्योंकि बैगों में नमी की कमी हो सकती है। पाॅलीथीन हटाने के बाद फलन के लिए कमरे में तथा बैगों पर दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव करना चाहिए। कमरे में लगभग 6 से 8 घंटे तक प्रकाश देना चाहिए या कमरों में टयूबलाईट का प्रबंधन होना चाहिए।

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तुड़ाई

तुड़ाई

लगभग 15 से 25 दिन बाद या मशरूम के बाहरी किनारे ऊपर मुड़ने लगे तो मशरूम की पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए. मशरूम को नीचे से हल्का सा मोड़ने से मशरूम टूट जाती है. पहली फसल के 8-10 दिन बाद दूसरी तुड़ाई की जा सकती है. इस प्रकार तींन बार उत्पादन लिया जा सकता है. एक किलो सूखे भूसे से लगभग 600 से 650 ग्राम तक पैदावार मिलती है

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भण्डारण/ बाजार

भण्डारण/ बाजार

तुड़ाई के तुरंत बाद मशरूम को थैली में नहीं रखना चाहिए,लगभग 3 घंटे के बाद इन्हे पैक करना चाहिए, इन मशरूम को पूर्ण रूप से सूखा कर भी बेचा जा सकता है, इस मशरूम की खेती में लगने वाली लागत 10 से 15 रूपर प्रति बेग होती है और मशरूम का मूल्य 200 से 300 रुपए प्रति किग्रा होती है।

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