

स्ट्रॉबेरी की खेती किसानो की आर्थिक स्तिथि को सुधारने में बहुत लाभकारी साबित हो रही है, पहले इसकी खेती सिर्फ पहाड़ी और ठन्डे भागो में ही की जा सकती थी, लेकिन बढ़ते व्यापरिक मूल्य और कृषि वैज्ञानिक के शोधो की वजह से अब मैदानी भागो में भी इसकी खेती की जा रही है, भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊपरी हिस्सों में अधिक की जाती थी लेकिन अब महारष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के भी कई किसान अब सफलता पूर्वक इसकी खेती कर रहे है, स्ट्रॉबेरी की कुल ६०० किस्मे खोजी जा चुकी है, स्ट्रॉबेरी में विटामिन ‘सी, आयरन, पोटेशियम और फाइबर पाए जाते है, इसका उपयोग खाने की चीजों में एसेंसे के रूप में, जेम आइसक्रीम, चॉकलेट, केक और सौन्दर्य प्रसाधन में बहुत अधिक किया जाता है इसलिए वर्ष भर इसकी बाजार में मांग बनी रहती हैं।
स्ट्रॉबेरी के पौधों को मध्यम तापमान की आवश्यकता होती है, इसलिए इसकी बुवाई सितम्बर से अक्टूबर के बिच की जाती है, लेकिन ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती वर्ष भर की जा सकती है,ग्रीनहाउस में खेती करने से फलो की गुणवत्ता और मात्रा सामान्य खेती की तुलना में काफी बेहतर होती है।
स्ट्रॉबेरी की किस्मे
स्ट्रॉबेरी की किस्मे

वैसे देश में स्ट्रॉबेरी की अधिकतर किस्मे विदेशो में विकसित की गई है, लेकिन ये देश में भी अच्छे परिणाम देती है कुछ प्रचलित किस्मे इस प्रकार है:-
स्वीट चार्ली :-
स्वीट चार्ली :-
स्वीट चार्ली स्ट्रॉबेरी के पौधो को सूर्य की धुप की आवश्यकता होती है, ये पौधे नम, अच्छी तरह से सुखी मिट्टी में जिसमे कार्बनिक पदार्थों भरपूर हो, अच्छी उपज देती हैं,ये सूखे के प्रति सवेंदशील होते है इसलिए सिंचाई आवशयक होती है, इसमें रोपण के ३० से ४० दिन बाद पुष्पन होने लगता है।
वाइब्रेंट:-
वाइब्रेंट:-
यह सबसे अच्छी शुरुआती किस्मों में से एक है,जिसमे मौसम की शुरुआत में फलने लगते हैं। इसके फल बड़े, स्वादिष्ट, सुडौल और दृढ़ होते है और यह ठंढ और रोग प्रतिरोध किस्म होती है।
केमारोजा :-
केमारोजा :-
स्ट्रॉबेरी एक शुरुआती छोटी दिन की किस्म है, जिसमे बड़े से बहुत बड़े, दृढ़, गहरे लाल फल मिलते है। यह रोग प्रतिरोधी और ३० c तक तापमान सहन कर सकती है, इसके पौधे १२ से १६ इंच तक बड़े होते है। और रोपण के ५० दिनों के बाद फल लगना शुरू हो जाते है।
मिट्टी की गुणवत्ता और भूमि की तैयारी
मिट्टी की गुणवत्ता और भूमि की तैयारी
स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त है अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाए जिसे फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की सही मात्रा का अनुमान लगाया जा सके, स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए तापमान १८ से ३० डिग्री सेल्सियस होना लाभप्रद होता हैं, स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ५.० से ६.५ तक पीएच वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है, यदि खेत में बलुई दोमट मिट्टी है तो आपके खेत में स्ट्रॉबेरी की उपज दोगुनी हो सकती है, खेत तैयार करने के लिए जुताई करते समय एक एकड़ में ७५ - ८० टन अच्छी सड़ी हुई गोबर खाद, नीम की खल्ली २० - ४० टन और मिट्टी की जांच के अनुसार आवश्यक मात्रा में पोटाश और फोस्फोरस का उपयोग करना चाहिए।


स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए क्यारियो की तैयारी
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए क्यारियो की तैयारी


खाद मिलाने के बाद खेत में क्यारी तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण होता है,क्यारी हमेशा जमीन से २५ – ३० सेंमी ऊँची उठी हुई होनी चाहिए,चोड़ाई १०० से १२० सेंमी तक रखना चाहिए,दो क्यारियों के बिच ५० से ८० सेंमी की दुरी रखना चाहिए, जिसे अन्य कार्य और टपक सिचाई स्थापित करने में आसानी हो। इसके साथ ही क्यारी को काले मल्च से ढक देना चाहिए जिसे खरपतवार का प्रभाव कम हो जाये और मिट्टी की नमी बनाए रखा जा सके, मल्च के ८० mm मोटी मल्च का उपयोग करना चाहिए, और १ फिट की दुरी पर छेद बनाना चाहिए।
यदि किसान के मल्चिंग के लिए सुविधा ना हो तो धान के अवशेष का उपयोग कर सकते है, और यदि टपक सिचाई की सुविधा ना हो तो दो क्यारी के बिच पानी भरकर भी सिंचाई की जा सकती हैं।


रोपण
रोपण


स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए तैयार पोधो का उपयोग किया जाता है, इसे सीधे बीजो से तैयार नहीं किया जाता, इसलिए पौधे हमेशा अपने नजदीकी सरकारी कृषि संस्था, प्रयोगशाला या विश्वसनीय नर्सरी से खरीदना चाहिए, इसके पौधे ५ से २० रुपए प्रति पौधे की दर से खरीदे जा सकते है, एक एकड़ में लगभग ५०००- ५५०० पौधे लगाए जा सकते हैं। साथ ही आप को ये भी जाना चाहिए की लगभग सभी राज्यों में सरकार ४० से ६० प्रतिशत तक का अनुदान देती है. ज्यादा जानकारी के लिए कृषि विभाग में संपर्क करें ।


रोपण का समय और दुरी
रोपण का समय और दुरी


यदि आप के पास ग्रीनहाउस की सुविधा नहीं है, तो १० सितम्बर से १५ अक्टूबर के बिच करना चाहिए लेकिन यदि तापमान अधिक हो तो रोपण उस अनुसार आगे बढ़ाया जा सकता है। रोपण की दुरी किस्मो के अनुसार अलग हो सकती है जो ३० सेमी से १ फिट तक होती है, रोपण अधिक गहराई में नहीं करना चाहिए, और मल्च का उपयोग जरूर करना चाहिए, जिसे रोग और खरपतवार की समस्या कम हो।


सिचाई
सिचाई


स्ट्रॉबेरी की खेती में सही समय पर सिंचाई करना महत्वपूर्ण हैं, इसलिए आपको सिंचाई की सही विधि से और समय पर करना चाहिए, पहली सिचाई पौधे लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद नमी को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर सिंचाई करनी चाहिए, जब स्ट्रॉबेरी के फल आने लगे तब फव्वारे विधि से सिंचाई करना चाहिए, जब फल आ जाए तो पुनः टपक सिंचाई का उपयोग करना चाहिए। यदि सिचाई सुविधा उपलब्द नहीं है, तो मौसम को ध्यान में रखते हुए दो क्यारी के बिच पानी दे कर सिचाईं करना चाहिए।


लो टनल का उपयोग
लो टनल का उपयोग


जिन किसानो के पास पॉलीहाउस की सुविधा नहीं है, तो उन्हें लो टनल का उपयोग करना चाहिए, इसलिए १०० से २०० माइक्रोन की पारदर्शी पन्नी का उपयोग करना चाहिए, लो टनल बनाने के लिए लोहे के तार या बास का उपयोग करें, पन्नी से रात के समय क्यारी को ढक दे, जिसे फसल को पाले और ठंड से बचाया जा सके और दिन के समय इसे हटा दे।


रोग एवं कीटो से बचाव
रोग एवं कीटो से बचाव


जड़ सम्बन्धी रोगो से बचाव के लिए क्यारी तैयार करते समय नीम की खल्ली का उपयोग करें इसका इस्तमाल बाद में भी पौधों की जड़ों में डाल कर सकते हैं, इसके अलावा फसल पत्तों के धब्बा रोग, फफूंदी, माहु से प्रभावित हो सकती है। इसके लिए समय समय पर पोधों के रोगों की पहचान कर वैज्ञानिकों या कृषि विशेषज्ञो की सलाह के अनुसार कीटनाशक दवाइयों का उपयोग करें ।
फसल की तुड़ाई का सही समय और उत्पादन
फसल की तुड़ाई का सही समय और उत्पादन
फलो की तुड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की बाजार आप के खेत से कितना दुर है, सामान्यतः जब फल ६० से ७०% तक लाल हो जाये उन्हें डंडी के साथ तोडना चाहिए, जितना जरुरी हो उतना ही फलो की तुड़ाई करना चाहिए। फलो को छोटे प्लास्टिक के डब्बो में रखना चाहिए और कागज या पत्तो का उपयोग करना चाहिए जिसे फलो की गुणवक्ता खराब ना हो।
समयान्तः एक एकड़ से ४ से ७ टन कुल उत्पादन लिया जा सकता है,जिसका बाजार मूल्य २०० से ६०० रुपए किग्रा तक मिल होता है।


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