

बाँस की खेती सदाबहार पौधे के रूप में की जाती है। यह घास प्रजाति का पौधा है, बाँस की कुछ किस्में ऐसी है जिसके पौधे एक दिन में तकरीबन 90 सेमी तक बढ़ जाते है | भारत बाँस उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है, पूरे विश्व में बाँस की तक़रीबन 1400 से अधिक प्रजातियों है जिसमे से सब से अधिक भारत में पाई जाती है, पिछले वर्षो में बाँस की खेती करना किसानो के लिए सरल नहीं था, क्युकी सरकार के नियमानुसार बाँस की कटाई प्रतबंधित थी, लेकिन 2018 में हुए नियम परिवर्तन के बाद अब बाँस की कटाई पर फॉरेस्ट एक्ट नहीं लगेगा, हालांकि ऐसा सिर्फ निजी जमीन के लिए किया गया है. जो बाँस फारेस्ट की जमीन पर हैं, उन पर यह छूट नहीं है, लेकिन किसान अपने खेत में बाँस की खेती स्वतंत्र रूप से कर सकते है,और अच्छा लाभ भी कमा सकते है।
भारत में ज्यादातर बॉस की खेती अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल ,मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है, इसके अलावा बांस उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, जम्मू कश्मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि राज्यों में भी पाए जाते है।
बांस की विभिन्न प्रजातियां
बांस की विभिन्न प्रजातियां

बम्बूसा तुलदा, डेंड्रोकलामस सख्त, बंबूसा वल्गरिस, बम्बूसा नूतन, बंबूसा बम्बोस, बंबूसा पॉलीमोरफा, बंबूसा पलिडा, डेंड्रोकलामस ब्रांडिसि, ओचलैंड्रा ट्रावनकोरिका आदि प्रमुख है।


मिट्टी और जलवायु
मिट्टी और जलवायु
कई राज्यों में जहां किसान बंजर भूमि या मौसम की वजह से अन्य फसलों की खेती नहीं कर पाते ऐसे स्थानों पर बांस की खेती सरलता से कर सकते है, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बांस के पौधों के लिए किसी खास तरह की उपजाऊ जमीन की आवश्यकता नहीं होती है, यह सभी प्रकार की मिट्टी जलवायु में आसानी से लगाया जा सकता है। यह सदाबहार वनों की जलवायु के साथ-साथ शुष्क क्षेत्रों में सफलता पूर्वक वृद्धि कर लेता है। बांस अच्छे जल निकास वाली वाली बलुई मिट्टी में अच्छी वृध्दि करता है. बांस की कुछ जातियों को पानी के स्रोतों के समीप नम जगहों पर बलुई मिट्टी में अच्छी प्रकार उगाया जा सकता है।


नर्सरी निर्माण
नर्सरी निर्माण
बांस को बीज, कटिंग या राइज़ोम से लगाया जा सकता है. इसके बीज महंगे होते हैं, बांस की कीमत पौधे की किस्म और गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है,बाँस के पौधों की रोपाई खाली पड़ी भूमि या फिर खेत किनारे बाड़ की तरह की जाती है, क्युकी इसके बीज महंगे होते है और बीजो से इसे लगाना थोड़ा कठिन होता है इसलिए बांस की खेती कलमों से की जाती है, इसलिए किसान को कम से कम एक साल पुरानी कलियों को जड़ों सहित खोदकर एक मीटर लम्बी कलम बनाकर जून से अगस्त के बिच लगाना चाहिए। इसलिए 1 * 1 फिट के आकार के गड्ढे 30 सेमी की गहराई में लगाना चाहिए, या प्लास्टिक बेग का भी उपयोग कर सकते है, दोनों स्तिथि में मिट्टी और खाद का अनुपात समान ही रखे। गड्डो में मिट्टी 40:60 के अनुपात में गोबर की खाद और मिट्टी भर दे, नर्सरी अवस्था में उचित सिंचाई देना आवश्यक होता है, बाँस के पौधो को एक साल तक नर्सरी में रखा जा सकता है,उसके बाद मुख्य खेत में इसका रोपण किया जा सकता है।


रोपण
रोपण
खेतो में रोपाई से पहले खरपतवार हटा दे, रोपाई के लिए बरसात से पहले 5 * 5 मीटर की दूरी पर 0.3 * 0.3 * 0.3 मीटर के गड्ढे बना कर कलमों की रोपाई करे, खेतो में रोपण के समय गोबर खाद का उपयोग करना बेहतर होता है, वैसे 1 वर्ष में एक एकड़ में 10 किग्रा गोबर खाद की आवश्यकता होती है और एक एकड़ में 150 - 250 बांस के पौधे लगाए जा सकते हैं, रोपाई के तुरंत बाद पौधे को पानी दें, और एक महीने तक रोजाना सिंचाई करे ( मौसम के अनुसार ) एक महीने के बाद वैकल्पिक दिनों में पानी दे, और 6 महीने के बाद इसे सप्ताह में एक बार कम करें। बाँस की फसल एक लम्बे समय तक ली जाने वाली फसल है, इसलिए किसान इन फसलों के साथ छोटे समय वाली फसल जैसे चारा फसल, सब्जी आदि साथ में लगा सकते है।


निराई-गुड़ाई
निराई-गुड़ाई
रोपाई के बाद एक वर्ष तक हर माह पौधे के आस-पास निराई-गुड़ाई कर घास व खरपतवार निकाल देना चाहिए, दूसरे वर्ष जनवरी-फरवरी माह में पौधों के पास दो मीटर की घेरे में 15 से 30 सेमी० की गहरी गुड़ाई कर मिट्टी चढा देनी चाहिए, इसी तरह आवश्यक होने पर मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया दोहराई जाना चाहिए।


रोग एवं कीट
रोग एवं कीट
सामान्यतः बाँस के पौधो पर कीट या बीमारी का प्रभाव कम होता है, लेकिन दीमक, तराजू, एफिड्स, माइलबग्स, बीटल क्षेत्रों के अनुसार फसल को हानि पंहुचा सकते है, इनके उपचार के लिए आप कवकनाशी तथा कीटनाशी का उपयोग अपने अनुभव के आधार पर कर सकते है, या नजदीकी कृषि महाविद्यालय या कृषि केंद्र से संपर्क कर सकते है।


कटाई और लाभ
कटाई और लाभ
आमतौर पर बाँस की खेती तीन से चार साल में तैयार होती है, किसान चौथे साल में कटाई शुरू कर सकते हैं, इसकी कुछ किस्में कटाई के पश्चात अपने आप फिर से वृद्धि कर लेती है | बाँस में नए-नए कल्लों का विकास हर वर्ष होता है, इसलिए दो या तीन सालों में पुराने कल्लों को काट लेना चाहिए। इसके अलाव इस बात का ध्यान रखे कि कटाई करते समय बांस के प्रकंदों को नुकसान न पहुंचे, दो या कम वर्ष के बाँस नहीं काटने चाहिए, भूमि की सतह से एक फुट उंचाई पर लगभग दूसरी गाँठ पर से बाँस को काटना चाहिए, जब कटाई की जाये बांस में लगभग 25 से 35 प्रतिशत तक नमी होना चाहिए।
पांच साल में एक एकड़ में बाँस के रोपण की लागत लगभग 10000 रुपये होती है। और उसकी कटाई ५ से ६ साल से शुरू होती है। बाँस के बागान से उपज और आय हर साल बढ़ती जाती है। एक बाँस की कीमत 100 रुपए से 600 रुपये तक होती है जो उसकी उम्र और किस्म पर निर्भर होता हैं।
भारत द्वारा अभी 12000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बाँस का आयात करता है और भारत दुनिया में बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, किसान सरकार को सीधे भी बॉस बेच सकते हैं।


राष्ट्रीय बैंबू मिशन
राष्ट्रीय बैंबू मिशन
बाँस की खेती को व्यापक बनाने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय बैंबू मिशन भी बनाया है. जिसके तहत किसान को बांस की खेती के लिए जानकरी के साथ आर्थिक सहायता भी दे रही है, जिसे कृषि और ग्रामीण अर्थव्यस्था में सुधार होगा, बाँस लकड़ी और स्टील का पर्याय बन कर सामने आ रहा है इसलिए आने वाले वर्षो में इसकी मांग बढ़ने वाली है, इसलिए सरकार द्वारा बाँस की खेती के लिए प्रति पौधा 120 रुपये की सरकारी सहायता दे रही है और साथ ही बाँस से जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी 50% अनुदान प्रदान कर रही हैं।
राष्ट्रीय बांस मिशन के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया
राष्ट्रीय बांस मिशन के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया
➥ सबसे पहले आपको आधिकारिक वेबसाइट nbm.nic.in पर जाना होगा
➥ वेबसाइट पर आपको ऊपर की और किसान पंजीकरण का लिंक दिखाई देगा. जिस पर क्लिक करते ही आपके सामने रजिस्ट्रेशन का पेज खुल जाएगा
➥ रजिस्ट्रेशन फॉर्म में आपको आवश्यक जानकारी भरनी होगी जिसमे सबसे पहले राज्य, जिला फिर तहसील और अंत में गांव का का चुनाव करें।
➥ इसके बाद वित्तीय वर्ष की जानकारी जहां किसान का नाम आधार कार्ड और बैंक की कुछ जानकारी दर्ज करना होगी।
➥ जानकारी सबमिट करने के बाद आपका पंजीकरण राष्ट्रीय बांस मिशन में हो जाएगा और नामांकन संख्या आप को मिल जाएगी।
➥ यदि किसान ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकते तो अधिक जानकारी के लिए संबंधित अधिकारी या नोडल अधिकारी से भी संपर्क कर सकते हैं.


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