

सीधी बिजाई (DSR) धान के सच्चे साथी
सीधी बिजाई (DSR) धान के सच्चे साथी
धान की खेती में सीधी बुआई क्या होती है ?
धान की खेती में सीधी बुआई क्या होती है ?

नर्सरी से रोपाई के बजाय, सीधे मुख्य खेत में बीज द्वारा फसल बुआई की एक प्रक्रिया है| वैसे बुआई की दो विधिया प्रचलित है, सुखी बुआई और गीली बुआई, जिन किसानो के पास सिचाई सुविद्या उपलब्ध होती है वो गीली बुआई विधि अपना सकते हैं।
क्यों अपनाया जा रहा है धान की सीधी बुवाई?
क्यों अपनाया जा रहा है धान की सीधी बुवाई?
आज कल धान की सीधी बुआई विधि को अपनाया जा रहा हैं, क्योकि आज कल किसानो को श्रमिक को कमी का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए किसान धान की सीधी बुआई जैसे वैल्कल्पिक तरीको को अपनाना पड़ रहा हैं, चूकि इस विधि में कम श्रमिको की आवश्यकता होती है और रोपाई वाली फसलों की तुलना में तेजी से परिपक्व होती है। साथ ही इस विधि में पौधो पर अतिरिक्त दबाव भी नहीं पड़ता, क्योकि जब नर्सरी में तैयार पौधों को मुख्य खेत में रोपा जाता है उस समय जड़ो पर नर्सरी से निकालने और मुख्य खेत में पुनः स्थापित करने के दौरान जड़ो पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, हलाकि नर्सरी विधि में खरपतवार की समस्या कम होती हैं|
धान की गीली सीधी बुआई के लिए किसान को कौन से महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं:
धान की गीली सीधी बुआई के लिए किसान को कौन से महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं:
1.बीज उपचार:
1.बीज उपचार:
गाउच कीटनाशक से बीजो को उपचारित करके अंकुरण को अधिक मजबूत बनाया जा सकता है, 1 किलोग्राम बीजो के लिए 2.5 मिली गाउच का प्रयोग करें, सूखे बीजो के लिए 25 से 30 मिली/ पानी / किग्रा. की आवश्यक होती है, बीजोपचार से फसल को प्रारंभिक अवस्था में रस चूसने वाले कीटों से सुरक्षा और मजबूती मिलती है|
2.बीजों के बीच उचित दर:
2.बीजों के बीच उचित दर:
सीधी बुवाई के लिए 10-15 किग्रा / एकड़ का बीज दर इष्टतम पाया गया है। धान के लिए बीज बोने की गहराई महत्वपूर्ण है और इसे सूखी सीधी बुवाई के लिए में 2-3 सेमी से अधिक गहरा नहीं होना चाहिए, लेकिन गीली बुवाई के लिए गहराई 3-5 सेमी होनी चाहिए। छोटे बीजों और बासमती को कम गहराई की आवश्यकता होती है, दो पंक्तियों के बिच २० से.मी. की दुरी रखना चाहिए और बीजो को ड्रिल मशीन से बोया जाना चाहिए|
3.जल प्रबंधन:
3.जल प्रबंधन:
धान की फसल पानी की कमी के प्रति बहुत संवेदनशील होती है , ईसलिए अच्छी पैदावार के लिए उचित जल प्रबंधन की व्यवस्था बनाये रखे, बीजो के अंकुरण होने तक उचित नमी बनाये रखे लेकिन जल जमाव से बचे अन्यथा बीज सड़ सकते है, फसल के तीन पत्तियों वाले चरण में आने के बाद शाकनाशी का उपयोग करें,और उचित जल स्तर बनाये रखे, और वैकल्पिक गीली/ सुखी विधियों का पालन करें, ध्यान रखे बीजरोपण ,अंकुरण निकलने और पुष्पन अवस्था में जल कमी ना हो।
4.शाकनाशी खरपतवार प्रबंधन:
4.शाकनाशी खरपतवार प्रबंधन:
जहां किसानो द्वारा धान की सीधी मुख्य खेत में बुआई की जाती है, वहां खरपतवार का खतरा अधिक होता है, इसलिए समय पर नियंत्रण आवश्यक है अन्यथा उपज पर बुरा प्रभाव होता हैं, इसलिए किसानो को २ - ४ पत्तियों वाले चरण में खरपतवार नाशक का उपयोग साफ पानी के साथ करना चाहिए,क्योकि गंदे या मिट्टी वाले पानी में उपयोग करने से दवा का प्रभाव कम हो जाता हैं, खरपतवार नियंत्रण के लिए काउंसिल एक्टिव (ट्रायफामन 20% + एथोक्सीसल्फ्यूरॉन 10% डब्ल्यूजी) एक नया रसायन उत्पाद है, जो रोपाई के 5 दिनों के भीतर इस्तेमाल किया जा सकता है, यह चौड़ी पत्ती, घास घास और खरपतवारों को नियंत्रित करता है।
5.हाथो द्वारा खरपतवार प्रबंधन:
5.हाथो द्वारा खरपतवार प्रबंधन:
हाथो द्वारा कुछ स्थानों पर निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं, जिसे रासायनिक दवा का उपयोग करने की जरुरत नहीं होगी, इस प्रकार मिट्टी में खरपतवार के बीजो को जमा होने से भी बचाता हैं।
6.जिंक की कमी का प्रबंधन:
6.जिंक की कमी का प्रबंधन:
फसल में जिंक की कमी से फसल पर हानिकारक प्रभाव होते है इसलिए १६ किलोग्राम उच्च जिंक ३३ % या २५ किलोग्राम इंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट २१ % का उपयोग जिंक की कमी होने पर किया जा सकता है जिंक की कमी से अंकुर छोटे अविकसित रह जाते है, खेत के निरीक्षण के बाद दिए गए सुझाव अनुसार खाद का उपयोग करें या फसल विशेषज्ञ से संपर्क करें, लौहतत्व की कमी अंकुर में हरिद्रोग (क्लोरोसिस) का कारण बनती है जो रोपाई के तीन सप्ताह बाद सबसे छोटी पत्ती में दिखाई देता है जिसे पौधे मर जाते हैं और अक्सर फसल पूरी तरह विफल हो जाती है, जैसे ही क्लोरोसिस ( हरिद्रोग) दिखाई देता है, तुरंत सिंचाई शुरू करें, और साप्ताहिक अंतराल पर एक प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल के २-३ छिड़काव करे| (१ लीटर फेरस सल्फेट १०० लीटर पानी में प्रति एकड़)।


7.रोग प्रबंधन:
7.रोग प्रबंधन:
इस चरण में पत्तियों पर झुलसा रोग से फसल को नुकसान हो सकता है, इसलिए उपयुक्त कीटनाशक का उपयोग समय पर करना चाहिए, इस चरण ८० ग्रा./ एकड़ नेटिवो (टेबूकोनाजोल ५० %+ ट्राईफ्लॉक्सिस्ट्रोबिन २५ %) डब्लू /डब्लू ईसी ( ७५ डब्लूजी) या 300 ग्रा./ एकड़ फोलिक्योर (टेबूकोनाजोल 25.9% डब्लू /डब्लू ईसी) या 240 से 300 मिली. मोंसर्न (पेंसिक्यूरॉन 22.9% डब्लू /डब्लू ऐसी ) जैसे कवकनाशी का छिड़काव 150 से 200 लीटर पानी में मिला कर करें।






8.तना छेदक ओर पत्ती लपेटक कीट प्रबंधन:
8.तना छेदक ओर पत्ती लपेटक कीट प्रबंधन:
रीजेंट अल्ट्रा (फिप्रोनिल) ग्रैन्यूल 5 किलोग्राम/एकड़ का प्रयोग कर तना छेदक, पत्ती लपेटक कीट, धान गाल मिज/ मक्खी /नरई कीट और छल्ला कीट (व्हर्ल मैगॉट) से होने वाले रोगो को नियंत्रित किया जा सकता है यह कीटों को नियंत्रित करने के अलावा यह पौधे की वृद्धि में भी मदद करता है|




9. धान में भूरे माहु का नियंत्रण(बीपीएच):
- धान में भूरे माहु का नियंत्रण(बीपीएच):
भूरे माहु को नियंत्रण को करने के लिए प्रभावी कीटनाशक का उपयोग करें, इसलिए ग्लैमोर (एथिप्रोले + इमिडाक्लोप्रिड ८० डब्लूजी (४० + ४० % डब्लु/डब्लु) का अनुसंशित मात्रा में छिड़काव करें।




10.कटाई:
10.कटाई:
फसल की कटाई फसल की परिपक्वता से शुरू होती है। फसल की कटाई तब होनी चाहिए जब 80% बांलिया पक जाए। अगर देरी होती है तो पक्षियों, पानी के भराव, चूहों दवारा क्षति हो सकती है जिसे अनाज का नुकशान हो सकता है। जबकि अगर समय पर कटाई होती है, तो उसकी गुणवत्ता अच्छी होती है तथा ग्राहक को भी संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा यह भी देखा गया है कि अनाज स्वस्थ होने पर टूटता भी कम है फसल को या तो दांतेदार दरांती से हाथ से या उपलब्धता के आधार पर काटा जा सकता है। ध्यान रखे और अनाज को 20% नमी के साथ काटे।




1.बीज उपचार:
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