

अदरक भारत की एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है,औषधीय उपयोगों में इसका बहुत अधिक महत्व है,अदरक विभिन्न प्रकार के विटामिन और खनिज प्रदान करता है। सूखे अदरक को सोंठ भी कहते है, जिसका उपयोग तेल, शीतल पेय, गैर-मादक पेय में सुगंध के लिए किया जाता है। भारत 50 से अधिक देशों में अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है।
रोपण का समय
रोपण का समय

अदरक को अप्रैल-मई की शुरुआत से लगाया जा सकता है। लेकिन सबसे अच्छा समय मध्य अप्रैल का रहता है, जिस समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है।
मिट्टी और जलवायु
मिट्टी और जलवायु
अदरक एक उष्ण कटिबंधीय फसल है, जिसके लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। लेकिन कंद के विकास के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे अच्छी होती है, गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, दोमट मिट्टी, अम्लीय पदार्थ से भरपूर मिट्टी, अदरक की खेती के लिए सब से उपयुक्त होती है।


भूमि की तैयारी
भूमि की तैयारी
खेत की हल से आडी और तिरछी दो बार जुताई करें, और साथ में पूरी तरह से विघटित १ .५ -२ टन/एकड़ गोबर खाद शामिल करें। बारिश के मौसम में फसल लेने के लिए खेत में ऊंची उठी क्यारी बनाये जो १ मी चौड़ी ३ से ६ मी लम्बी और १५ सेमी ऊंची हो, खेत में सुविधा पूर्वक काम करने के लिए दो क्यारी के बीच ३० सेमी की दुरी रखे और जल निकास की सुविधा बनाये रखे।
बीज दर:- कीट एवं रोग रहित ९०० -१००० किग्रा /एकड़ उपयोग करना चाहिए।


बीजोपचार
बीजोपचार
बीज उपचार करने से अंकुरण जल्दी होता है, और फसल में होने वाले बीज जनित रोग और कीटों के प्रभाव को भी रोकता है। इसलिए बिजाई से पहले कंदो को डाइथेन एम-४५, 1 ग्राम प्रति लीटर पानी से भी उपचारित किया जा सकता हैं।


खाद एवं उर्वरक
खाद एवं उर्वरक
अदरक एक व्यापक फसल है, और बेहतर उपज और गुणवत्ता के लिए भरपूर खाद की आवश्यकता होती है।इसलिए खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ २-३ टन गोबर की खाद मिट्टी में मिला देना उचित होता है। इसके साथ रासायनिक उर्वरकों के रूप में एनपीके ५०:४०:४० किग्रा/एकड़ उपयोग करना चाहिए। जिसमे १/३ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालें। और शेष नाइट्रोजन की १ /३ मात्रा बुवाई के ४५ दिन बाद तथा शेष १ /३ मात्रा बुआई के ९०-९५ दिन के बाद इस्तेमाल करें।

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रोपण की विधि
रोपण की विधि
अदरक को छोटे कंदो के माधयम से लगाया जाता है,जिन्हें बिट्स कहा जाता है। रोपण के लिए मुख्य कंद से ४-५ सेमी लंबे २५-३० ग्राम वजनी टुकड़े किये जाते है।अदरक की बुवाई के लिए ३० सेमी X २५ सेमी की दूरी आदर्श मानी जाती है। अदरक के कंदो को क्यारी में ४-५ सेमी की गहराई में गड्डे में लगाया जाता है,और फिर इसे अच्छे से मिट्टी से ढक दिया जाता है।


खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन
पहले ४-६ सप्ताह के दौरान हाथ से खेत की निराई की जा सकती है। बेहतर उपज के लिए खरपतवार की तीव्रता के आधार पर ३-४ बार निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए।


मिट्टी चढ़ाना
मिट्टी चढ़ाना
कंदो के अच्छे विकास के लिए कंद की रेशेदार जड़ों को तोड़ना जरुरी होता हैं, इसलिए पौधों के चारों ओर की मिट्टी को खुरपी की मदद से खोदना चाहिए, जिसे कंद के पास की मिट्टी ढीली और भुरभुरी हो जाती है, जो कंद के विकास में सहायक होती हैं,कंदों की बेहतर वृद्धि और विकास के लिए कम से कम दो बार मिट्टी चढ़ाने की आवश्यकता होती है।


फसल की सुरक्षा
फसल की सुरक्षा
टिड्डे , शल्क कीट और माहु अदरक की फसल के आम कीट हैं, लेकिन वे उपज को अधिक हानि नहीं पहुंचाते हैं।पत्ती का धब्बेदार रोग , जड़ गलन और बैक्टीरियल विल्ट (मुरझानी रोग) कुछ प्रमुख रोग हैं।
नरम सड़ांध
नरम सड़ांध


यह संक्रमण झूठे तने के ऊपरी क्षेत्र से शुरू होता है और ऊपर से नीचे की ओर बढ़ता है। संक्रमित तना पानी से लथपथ हो जाता है और सड़न पुरे कंद में फैल जाती है, जिसके परिणामस्वरूप नरम सड़ांध होती है। बाद के चरण में संक्रमण जड़ो में भी देखा जाता है। बाद में रोग के लक्षण पत्ती की निचली सतह पर हल्के पीले रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।


जीवाणु जनित म्लानि रोग
जीवाणु जनित म्लानि रोग
छद्म तने के मूल-संधि क्षेत्र में पानी के गीले धब्बे दिखाई देते हैं जो दोनों तरफ ऊपर और नीचे की ओर बढ़ते हैं। पहला विशिष्ट लक्षण निचली पत्तियों के पत्तों के किनारों का नरम होना गिरना और मुड़ना है, जो ऊपर की ओर फैलता हैं। पीलापन सबसे पहले निचली पत्तियों से शुरू होता है, और धीरे-धीरे ऊपरी पत्तियों तक बढ़ता है। उन्नत अवस्था में गंभीर पीलेपन और मुरझाने के लक्षण दिखाई देते हैं। प्रभावित छद्म तनों पर गहरे रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं।


पत्ती का धब्बेदार रोग
पत्ती का धब्बेदार रोग
यह रोग पत्ती पर पानी से भरे हुए लथपथ धब्बो के रूप में शुरू होता है और बाद में यह गहरे भूरे रंग के किनारों और पीले रंग से घिरे सफेद धब्बे के रूप में बदल जाता है। प्रभाव और बढ़ने पर घाव बड़े हो जाते हैं, और आस-पास के घाव मिलकर परिगलित क्षेत्रों का निर्माण करते हैं।


पौधो में गलन रोग
पौधो में गलन रोग
संक्रमित पौधे पीले पड़ जाते हैं,और उनका विकास रूक जाता हैं। रोग निचली पत्तियों से शुरू होता है,और पुरे पौधे में फ़ैल जाता है। और संक्रमित पौधे के कंद सिकुड़े जाते हैं।


तना छेदक
तना छेदक
तना छेदक अदरक में सबसे ज्यादा नुकसान करता है। जिसे ग्रसित पौधे के पत्ते और तना, पीले रंग के हो जाते हैं।


पत्ती का मुंडन रोग:-
लीफ रोलर पत्तियों पर हमला करता है जिसे पत्तियां मुड़ जाती हैं, यह रोग अगस्त और सितंबर के महीनों में सब से अधिक फैलता हैं।


राइज़ोम स्केल (शल्क किट)
वयस्क (मादा) किट पत्तो से रस चूसते हैं, और जब पौधे गंभीर रूप से संक्रमित होते हैं, तो कंद सिकुड़ जाते हैं,और यह अंकुरण को भी प्रभावित करते हैं। संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, सफेद रंग के किट कंदों पर बिखरे हुए दिखाई देते हैं,और बाद में वे बढ़ कर कलियों के पास एकत्र हो जाते हैं।
सलाह:-रोग और कीट नियंत्रण के लिए अनुसंशित कवकनाशी और कीटनाशक दवा का उपायोंग करना चाहिए।
सलाह:-रोग और कीट नियंत्रण के लिए अनुसंशित कवकनाशी और कीटनाशक दवा का उपायोंग करना चाहिए।
कटाई और उपज
कटाई और उपज
अदरक रोपण के २१० -२४० दिनों में पूर्ण परिपक्वता प्राप्त कर लेता है। सब्जी के लिए अदरक की कटाई १८० दिनों के बाद बाजार की मांग के आधार पर करना चाहिए, लेकिन सोंठ बनाने के लिए परिपक्व कंदों को पूर्ण परिपक्वता होने के बाद काटा जाता चाहिए, यानी जब पत्तियां पीली हो जाती हैं और सूखने लगती हैं। और कटाई से एक महीने पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए और कंद के गुच्छों को कुदाल या खुरपी से सावधानी से निकालना चाहिए।
उपज:- अच्छी तरह से प्रबंधित फसल से ६ -१० टन/एकड़ की औसत उपज प्राप्त होती हैं।


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