

जमीन की तैयारी
जमीन की तैयारी
• करेले की फसल के लिए 2-3 बार जुताई कर कल्टीवेटर का उपयोग करे और पाटा चलाकर भूमि को बेहतर बनाया जा सकता है।
• खेत तैयार होने के बाद अनुशंसित दूरी (2-2.5 मीटर) पर 30-40 सेमी चौड़े खुले गड्ढे तैयार करें।
• गड्ढे एक तरफ पानी निकासी की सुविधा करे और दूसरी तरफ मेड बनाए।




पौधों के बीच की दूरी और मंडप की तैयारी
पौधों के बीच की दूरी और मंडप की तैयारी
करेले के पौधो की बेल कमजोर होती है, जिस कारण उसके विकास के लिए सहारे की आवश्यकता होती है। जिन पौधो को सहारा दिया गया हो ऐसे पौधे 6-7 महीने तक उपज देते रहते है, जबकि जिन पौधो को सहारा नहीं दिया गया हो जमीन बिछे हो 3-4 महीने तक ही उपज देते हैं। जिन बेलो को सहारा दिया गया हो वो कीटों और बीमारियों के प्रति कम संवेदनशील होती हैं क्योंकि वे मिट्टी के सीधे संपर्क में नहीं आती हैं। मंडप प्रणाली में, रोपण 2.5 x 1 मीटर की दूरी पर किया जाता है। 2.5 मीटर पर गड्ढे खोदे जाते हैं, और 5-6 मीटर की दूरी पर सिंचाई प्रणाली स्थापित की जाती हैं। बुवाई की गई पंक्ति के दोनों सिरों पर 5 मीटर की दूरी पर गड्ढे बना कर लकड़ी के खंभे (ऊंचाई में 3 मीटर) लगाए जाते हैं, और उन्हें तारो द्वारा जोड़ा जाता है, फिर ४५ सेमी की दुरी रख कर इन इन तारो को आपस में बांध कर मंडप तैयार किया जाता है, और बीजों को नाली के किनारे 1 मीटर की दूरी पर बोया जाता है और हल्के से मिट्टी से ढक दिया जाता है। बेलों को मंडप की ऊंचाई तक पहुंचने में लगभग 1.5 -2 महीने का समय लगता हैं, इसलिए विकास के शुरवाती समय में बेलों को मंडप तक पहुंचाने के लिए रस्सियों से बांधा जाता है। एक बार जब बेल मंडप की ऊँचाई तक पहुँच जाती हैं, तो नई शाखाओ को मंडप पर फँसा दिया जाता है।


बुवाई का समय और बीज दर
बुवाई का समय और बीज दर
• ग्रीष्म ऋतु-फरवरी-मार्च
• खरीफ ऋतु-जून-जुलाई
• बीज की दर 2-3 किग्रा/एकड़ है।
• बीज का रोपण मेड़ या क्यारी के किनारे नाली के सामने किया जाता है


खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन


• इस अवस्था में खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए एक बार हाथ से निराई-गुड़ाई की जाती है।


कीटों और रोगो की जांच
कीटों और रोगो की जांच
• अंकुरण के समय लाल कद्दू भृग और पत्ती सुरंगक जैसे कीड़ों के प्रभाव की निगरानी करें और अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करें। लाल भृग के लिए सायनट्रानिलिप्रल @ 2 मि.ली./लीटर का छिड़काव करें।
• डैम्पिंग ऑफ (अंकुरों का मर जाना ) रोग की घटनाओं पर नजर रखें, और अनुशंसित फफूंदनाशकों का छिड़काव करें।



कीटों और बीमारियों की पहचान
कीटों और बीमारियों की पहचान
• एफिड्स (माहू) और जैसिड्स (फुदका) जैसे रस चूसने वाले कीटों की संख्या पर नज़र रखें और अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
• सर्कोस्पोरा पत्ती का धब्बेदार रोग की पहचान करे और अनुशंसित फफूंदनाशकों का छिड़काव करें।
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कीटों और बीमारियों की पहचान और रोकथाम
कीटों और बीमारियों की पहचान और रोकथाम
• घुन, सफेद मक्खी और ककड़ी फल मक्खी जैसे कीटों की घटनाओं पर ध्यान दें और अनुशंसित कीटनाशकों या चिपचिपे जाल/प्रकाश जाल का उपयोग करे।
• कुकुरबिट फल मक्खी के प्रबंधन के लिए 1 किग्रा कुचले हुए कद्दू + 100 ग्राम गुड़ + 10 मिली मैलाथियान के साथ मिश्रण तैयार करें और 4-6 स्थानों प्रति एकड़ मिश्रण रख दे।
• वैकल्पिक रूप से 10 प्रकाश जाल/एकड़ की दर से उपयोग करें, या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली/लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
• पत्ती के धब्बेदार रोग और पावडरी फफूंद और पछेती झुलसा रोगों की घटनाओं की निगरानी करें और अनुशंसित कवकनाशी का छिड़काव करें, पाउडरी फफूंदी का प्रबंधन थायोफैनेट मिथाइल 70% डब्लूपी 2 ग्राम/लीटर पानी का मिश्रण तैयार कर पत्तों पर छिड़काव करे।

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कीटों और बीमारियों की पहचान और रोकथाम
कीटों और बीमारियों की पहचान और रोकथाम
• ककड़ी फल मक्खी जैसे कीटों की घटनाओं पर ध्यान दें और अनुशंसित कीटनाशकों या चिपचिपे जाल/प्रकाश जाल का उपयोग करे।
• कुकुरबिट फल मक्खी के प्रबंधन के लिए 1 किग्रा कुचले हुए कद्दू + 100 ग्राम गुड़ + 10 मिली मैलाथियान के साथ मिश्रण तैयार करें और 4-6 स्थानों प्रति एकड़ मिश्रण
रख दे।
• वैकल्पिक रूप से 10 प्रकाश जाल/एकड़ की दर से उपयोग करें, या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली/लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
• अल्टरनेरिया पत्ती का धब्बेदार रोग की घटनाओं के लिए निगरानी करें और उचित कवकनाशी का छिड़काव करें।
• रस चूसने वाले कीटों के प्रबंधन के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करें जो करेले के पिले मोज़ेक वायरस के वाहक के रूप में कार्य करते हैं।



शारीरिक और पोषण संबंधी विकार
शारीरिक और पोषण संबंधी विकार
• यदि कोई कमी का लक्षण दिखाई देता है तो उस विशेष पोषक तत्व का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।
• करेले में बोरोन की कमी के लक्षण
• करेले में सल्फर की कमी के लक्षण
• करेले में आयरन की कमी के लक्षण
• करेले में मैग्नीशियम की कमी के लक्षण
• करेले में मैंगनीज की कमी के लक्षण
• करेले में जिंक की कमी के लक्षण







कटाई और कटाई के बाद के कार्य
कटाई और कटाई के बाद के कार्य
• किस्म और मौसम के आधार पर पहली तुड़ाई 55-60 दिन के बाद शुरू होती है।
• करेले की तुड़ाई 2-3 दिन के अंतराल पर की जाती है.
• फलों को उनके आकार और रंग के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।
• छोटी गर्दन वाले लंबे हरे फल आमतौर पर बाजार में पसंद किए जाते हैं।
• कटी हुई उपज को रखने के लिए प्लास्टिक के टोकरे, बांस की टोकरियाँ या प्लास्टिक शीट से ढके लकड़ी के बक्सों का उपयोग किया जाता है।
• परिवहन से पहले, उपज को छायादार या ठंडे स्थान पर रखे।


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