

भारत केले के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है, जो कुल वैश्विक केले उत्पादन का २६.०८ % है, जो फलों की फसलों में सबसे अधिक है। भारत में, केले का कुल खेती योग्य क्षेत्र १३% और उत्पादन का १/३ % हिस्सा है। केले की खेती में कंद का चयन बहुत महत्वपूर्ण है।
अच्छी रोपण सामग्री का चयन कैसे करें
अच्छी रोपण सामग्री का चयन कैसे करें

• रोपण के लिए कंद या पौध विषाणु , कवक और जीवाणु एवं अन्य रोगों से मुक्त होना चाहिए।
• समान आकार के ३ -५ महीने पुराने कंद का चुनाव करना चाहिए। १.५ - २ .० किग्रा वजन वाले लम्बे फल वाली करपुरवल्ली और मोन्थन जैसी किस्मों के कंद का चुनाव करना चाहिए, लेकिन अधिकांश किस्मो के लिए १ -१.५ किग्रा वजन के कंदो का चुनाव करना चाहिए।
• आम तौर पर, गैर-मृत भागों से कंदों का चयन करें और स्वस्थ कंद चुनें, जो अच्छी तरह से विकसित होते हैं, और जिसमे पत्तिया पतली और लम्बी बढ़ती हो।




रोपण से पहले कंदों का बीज उपचार कैसे करें
रोपण से पहले कंदों का बीज उपचार कैसे करें
ऊतक संवर्धित कंद
• टिश्यू कल्चर (उत्तक सवर्धन) में केले के पौधों को एक नियंत्रित परिस्थितियों में एक मिट्टी रहित माध्यम में विकसित किया जाता है। पौधा कम से कम ४५ -६० दिन पुराना ३० सेमी ऊंचा, ५ सेमी मोटाई वाला पौधा रोपण के लिए आदर्श होता है।
• पौधे में कम से कम पांच पूरी तरह से खुले स्वस्थ हरे पत्ते होने चाहिए।
• २५ -३० सक्रिय जड़ें होनी चाहिए जो १५ -२० सेमी लंबी होनी चाहिए और साथ ही अच्छी संख्या में माध्यमिक जड़ें भी होनी चाहिए।
• आम तौर पर टिशू कल्चर के पौधे बीमारियों, कीटों और असामान्य वृद्धि रोग से मुक्त होते हैं।


ऊतक संवर्धित पौधे का रोपण पूर्व उपचार
ऊतक संवर्धित पौधे का रोपण पूर्व उपचार
• नेमाटोड संक्रमण और जीवाणु सड़ांध रोग से बचाने के लिए रोपण से एक सप्ताह पहले १०० मिली पानी में १० ग्राम कार्बोफ्यूरॉन और ०.२ % एमिसन का मिश्रण तैयार कर पॉलीथिन की थैलियों में डालें।
सामान्य कंद के लिए
• पारिंग: चुने हुए कंद की सभी जड़ों को काट दिया जाना चाहिए, साथ ही सतह की परतों के साथ कंद के सभी सड़े हुए हिस्से को हटा देना चाहिए, नेंद्रन किस्म के लिए कंद के छदम तने को १५ -२० सेंटीमीटर की लंबाई में काट लें और पुरानी जड़ों को हटा दें।
• प्रोलिंग: कंद को गाय के गोबर के घोल और राख से लिप्त कर रखा जाता है और लगभग ३ -४ दिनों के लिए धूप में सुखाया जाता है और रोपण से पहले १५ दिनों तक छाया में रखा जाता है।
• कंदों को ०.१ % कार्बेन्डाजिम (१ मिली/लीटर पानी) के घोल में लगभग २५ -३० मिनट के लिए भिगो दें, ताकि गलन रोग के प्रति संवेदनशील किस्मों जैसे रुस्तली, मोन्थम को रोग से बचाया जा सके।
• पौधों को सूत्रकृमि के संक्रमण से बचाने के लिए, मिट्टी में प्रति कंद ४० ग्राम कार्बोफ्यूरन ग्रेन्यूल्स मिलाएं।
रोपण के तरीके
रोपण के तरीके
आमतौर पर कर्नाटक के कई हिस्सों में केले की खेती के लिए गड्ढे वाली विधियों का पालन किया जाता है। सकर/पौधे मिट्टी के ऊपर ५ सेमी छद्म तना छोड़कर केंद्र में छोटे-छोटे गड्ढों में सीधे लगाए जाते हैं। रोपण के समय प्रति पौधा २५ ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस का प्रयोग लाभकारी होता है।
- गड्ढा रोपण विधि
गड्ढा रोपण विधि के अनुसार वर्गाकार विधि अपनाकर वांछित दूरी पर ४५ सेमी के ३ गड्ढे खोदे जाते हैं।
गड्ढों को रोपण से कम से कम १५ -३० दिन पहले मिट्टी, रेत और खाद के 1: 1: 1 के अनुपात में भर दिया जाता है।
मिट्टी चढ़ाने की आवश्यकता नही होती क्युकी रोपण उचित गहराई पर किया जाता है
यह पद्धति महँगी और अधिक मेहनत वाली होती है।


ऊतक संवर्धन पौधे:
ऊतक संवर्धन पौधे:
• समान दूरी पर ३० सेमी के गड्ढे बनाये।
• जिन पौधों की ऊंचाई ३० सेमी, मोटाई ५ सेमी और पांच पत्तियां होती हैं, उनकी जड़ो को कोई नुकसान पहुचाये बिना अलग कर दिया जाता है, और फिर जमीन के स्तर से २ सेमी नीचे छद्म तना रखकर गड्ढों में रख दिया जाता है।
• पौधे के चारों ओर की मिट्टी को धीरे से दबाया जाता है और गहरी बुवाई से बचा जाता है।


वर्गाकार रोपण विधि
वर्गाकार रोपण विधि
भारत में इस विधि को आम तौर पर उपयोग किया जाता है, क्योंकि इसकी खेती करना आसान है। जिसमे प्रत्येक गड्ढे के प्रत्येक कोने में उचित दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं। चार पौधों के बीच के केंद्रीय स्थान का उपयोग अन्य पौध उगाने के लिए किया जा सकता है, और यह विधि अन्तः फसल चक्र में उपयोगी होती है।


त्रिकोणीय प्रणाली
त्रिकोणीय प्रणाली


• उत्तक सवर्धन तकनीक केले की खेती के लिए सबसे उपयुक्त तकनीक है।
• यह प्रणाली वर्गाकार प्रणाली के समान ही है, लेकिन अंतर यह है कि पौधों को वैकल्पिक पंक्तियों में वर्ग के दो कोनों के बीच में लगाया जाता है
• इस प्रणाली वर्गाकार प्रणाली की तुलना में अधिक पौधे लगाए जा सकते है।


एकल पंक्ति प्रणाली
एकल पंक्ति प्रणाली
• इस विधि में पौधे एक पंक्ति में लगाए जाते है जिसमे पौधो के बिच दुरी कम रखी जाती है और दो पंक्ति के बिच दुरी अधिक रखी जाती है।
लाभ: पेड़ों में हवा का संचार बना रहता है, जिससे बीमारियों का प्रकोप कम होता है ।
• नुकसान: खेत में पेड़ों की संख्या कम होती है।


जोड़ीदार पंक्ति प्रणाली
जोड़ीदार पंक्ति प्रणाली
• इस प्रणाली में समानांतर रेखाएं १ .२० -१ .५० मीटर की दूरी पर बनाई जाती हैं, और पौधों से पौधे की दूरी १.२ -२ मीटर रखी जाती है, इस प्रकार पौधे लगाने से अंतर-सांस्कृतिक कार्य आसनी से किये जा सकते है।
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