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विशेषज्ञ लेख
कृषि में जैव उर्वरकों का उपयोग

खेती के जैविक तरीके, मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे कई आसान तरीके हैं जिन्हें किसान अपना सकते हैं, जैसे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए उचित जैव उर्वरकों का उपयोग करना।

जैव उर्वरक क्या हैं:

जीवाणु, कवक और शैवाल प्रजाति के जीवित सूक्ष्मजीवों को जैव-उर्वरक कहा जाता है। विशिष्ट मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार लाभ प्राप्त करने के किये वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगो से प्रभावी जैव-उर्वरको की पहचान की है।जिन्हे प्रयोगशाला में भी बड़ी मात्रा में बनाया जा सकता है, और किसानों को दिया जा सकता है, उन्हें वाहक के रूप में कोकोपीट या लिग्नाइट पाउडर (काले /भूरे रंग के पाऊडर) के रूप में पैक किया जा सकता है ताकि जल्दी ख़राब ना हो, लम्बे समय तक गुणवक्ता बनी रहे।

भारत में आमतौर पर उत्पादित जैव-उर्वरक की सूची 1. जीवाणु जैवउर्वरक: राइजोबियम, एज़ोस्पिरिलियम, एज़ोटोबैक्टर, फॉस्फोबैक्टीरिया। 2. शैवालीय जैवउर्वरक: अजोला।

भारत में आमतौर पर उत्पादित जैव-उर्वरक की सूची 1. जीवाणु जैवउर्वरक: राइजोबियम, एज़ोस्पिरिलियम, एज़ोटोबैक्टर, फॉस्फोबैक्टीरिया। 2. शैवालीय जैवउर्वरक: अजोला।

1.जीवाणु जैव उर्वरक

1.जीवाणु जैव उर्वरक

  1. राइजोबियम :

राइजोबियम का उपयोग फल्ली दार फसलों जैसे दालें, मूंगफली, सोयाबीन आदि में किया जा सकता है। इससे उपज 10-35% तक बढ़ जाएगी, और प्रति एकड़ 50-80 किग्रा नाइट्रोजन की स्थिरता को बढ़ाता है।

  1. एज़ोटोबैक्टर:

एज़ोटोबैक्टर का उपयोग शुष्क भूमि और गैर-फलीदार फसलों में किया जा सकता है। एज़ोटोबैक्टर के उपयोग से उपज 10-15% और नाइट्रोजन की स्थिरता 10-15 किलोग्राम प्रति एकड़ बढ़ जाती है।

3.एज़ोस्पिरिलम:

एज़ोस्पिरिलम का उपयोग मक्का, जौ, जई, ज्वार, बाजरा, गन्ना, चावल जैसी फसलों में किया जा सकता है और इस जैव उर्वरक का उपयोग करके 10-20% उपज बढ़ाई जा सकती है।

  1. फॉस्फेट घुलनशील पदार्थ (फॉस्फोबैक्टीरिया)

फॉस्फोबैक्टीरिया को सभी फसलों के लिए मिट्टी में उपयोग किया जा सकता है,जिससे उपज में 5-30% की वृद्धि हो सकती है।

जैव उर्वरक के उपयोग की विधियाँ

जैव उर्वरक के उपयोग की विधियाँ

राइजोबियम, एज़ोस्पिरिलम, एज़ोटोबैक्टर और फॉस्फोबैक्टीरिया द्वारा बीज उपचार:-

राइजोबियम, एज़ोस्पिरिलम, एज़ोटोबैक्टर और फॉस्फोबैक्टीरिया द्वारा बीज उपचार:-

राइजोबियम के प्रत्येक पैकेट (200 ग्राम) को 200 मिली चावल, दलिया या गुड़ के घोल के साथ मिलाएं, एक एकड़ के लिए आवश्यक बीजों को इस मिश्रण के साथ समान रूप से मिलाए जिसे बीजो पर समान रूप से एक आवरण चढ़ जाए, और फिर उन्हें 30 मिनट के लिए छाया में सुखाए, उपचारित बीज का उपयोग 24 घंटे के अंदर कर लेना चाहिए। राइजोबियम के एक पैकेज से 10 किलोग्राम बीज का उपचार किया जा सकता है।

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मृदा उपचार:

मृदा उपचार:

200 किग्रा खाद के लिए 4 किग्रा सुझाए गए जैव उर्वरक का उपयोग करे और इसे खाद में ठीक से मिलाए और इस मिश्रण को रात भर छोड़ दे। और फिर बुआई या रोपण से पहले इस मिश्रण को मिट्टी में मिला दे।

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अंकुरों की जड़ों का उपचार

अंकुरों की जड़ों का उपचार

प्रतिरोपित की जाने वाली फसलों के लिए, इस तकनीक का उपयोग किया जाता है जिस लिए एक हेक्टेयर भूमि के लिए पांच पैकेट (1किग्रा) उचित जैव उर्वरक को 40 लीटर पानी के साथ उपयोग किया जा सकता है। फिर प्रत्यारोपित किये जाने वाले पौधों की जड़ो के सिरे को 10 से 30 मिनट तक घोल में डुबाए रखने के बाद रोपित करे। चावल की फसल के लिए एज़ोस्पिरिलम का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।

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जैव उर्वरक के प्रयोग हेतु सावधानियां

जैव उर्वरक के प्रयोग हेतु सावधानियां

1 जैवउर्वरक को ठंडी और सूखी जगह (25-40 डिग्री सेल्सियस) में संग्रहित किया जाना चाहिए सीधे धूप के संपर्क से बचें।

2 इइसे विशिष्ट फसल के लिए अनुशंसित मात्रा में दिए गए निर्देश के अनुसार उपयोग किया जाना चाहिए।

3 जैवउर्वरकों का पैकेट खरीदते समय फसल का नाम, जिसके लिए उपयोग किया जाना है, निर्माण और समाप्ति तिथि सुनिश्चित कर लें।

4 जैवउर्वरकों का उपयोग रासायनिक एवं जैविक उर्वरकों के पूरक के रूप में किया जाना चाहिए।

राइजोबियम कल्चर की तैयारी

राइजोबियम कल्चर की तैयारी

स्वस्थ पौधों के राइजोस्फीयर से मिट्टी इकट्ठा करें और इसे सुखाएं, इसके बाद इसे पीसें और हल्का पतला मिश्रण तैयार कर ले, फिर रोगाणु मुक्त वातावरण (ओवन) में रोगाणु मुक्त की हुई ट्रे गर्म करे और फिर उसे ठंडा करें। उसके पश्यात उस ट्रे पर मिश्रण की कुछ बूंदें डालें और इसे तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रखे, जब मिश्रण जम जाये ट्रे (पेट्री डिश) को घुमाएं और सुरक्षित वातावरण में रख दे, 4-5 दिनों में कल्चर प्राप्त हो जायगा । इस मिश्रण को चारकोल (आधार सामग्री) में मिलाया जा सकता है और खेतों में उपयोग किया जा सकता है।

अजोला

यह चावल/ नमी वाली भूमि के लिए उपयुक्त है, एजोला 40-50 टन तक बायोमास दे सकता है और 15-40 किग्रा/एकड़ नाइट्रोजन स्थिरता प्रदान करता है।

अजोला की खेती की प्रक्रिया:

अजोला की खेती की प्रक्रिया:

  1. मेड़ पर ईंटों से 2 X1 मीटर X 15 सेमी आकार का एक टैंक तैयार करें, और टैंक के ऊपर पॉलिथीन शीट बिछा दें।

  2. टैंक में 25 किग्रा साफ मिट्टी डालें और इसे पूरे तालाब में समान रूप से फैला दे, और प्रति एकड़ 10 किग्रा धुलनशील फॉस्फेट डालें।

  3. टैंक में 5 किलो गाय का गोबर मिलाएं.

  4. पानी की टंकी को हमेशा 15 सेमी तक भरकर रखें

  5. तालाब में प्रति वर्ग मीटर के अनुसार 500 ग्राम एजोला कल्चर मिलाए

  6. 1-2 सप्ताह के बाद एजोला तालाब को पूरी तरह से ढक देगा और यह कटाई के लिए तैयार हो जाता है।

  7. प्रतिदिन 1-2 किग्रा अजोला की कटाई की जा सकती है।

  8. हेयरी कैटरपिलर जैसे कीट के हमले को कम करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3जी ग्रेन्यूल्स 2-4 ग्राम प्रति प्रति वर्ग मीटर के अनुसार उपयोग करें।

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एजोला का रखरखाव

एजोला का रखरखाव

  1. प्रत्येक 2 सप्ताह के अंतराल में 2 किलो गाय का गोबर मिलाए।

  2. टैंक से ¼ पानी निकालें और 2 सप्ताह में एक बार ताजा पानी भरें

  3. आधार से पुरानी मिट्टी को हटा दें, और टैंक में ताजा मिट्टी डालें

  4. टैंक को हर 6 महीने में एक बार खाली करे और नया मिश्रण बनाकर खेती फिर से शुरू करें।

  5. तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस और पीएच 5.5 से 7 के बीच बनाए रखें।

एजोला का उपयोग:

एजोला का उपयोग:

1 चावल की रोपाई से पहले, एजोला को 0.6-1.0 किग्रा/वर्ग मीटर (6.25-10.0 टन/हेक्टेयर) डाला जाता है जो मिट्टी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।

2 धान की रोपाई के 1 से 3 दिन बाद अजोला को 100 ग्राम/वर्ग मीटर (500 किग्रा/एकड़) की दर से उपयोग करे और 25 से 30 दिनों तक बढ़ने के लिए छोड़ दे। पहली निराई के बाद, एजोला के पत्तों को मिट्टी में एकीकृत किया जा सकता है।

3 एजोला को पशु के नियमित आहार में 2-2.5 किग्रा/पशु शामिल किया जा सकता है या अन्य चारे के साथ 1:1 के अनुपात में दिया जा सकता है।

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किसानों के लिए जैव उर्वरकों की उपलब्धता:

किसानों के लिए जैव उर्वरकों की उपलब्धता:

सभी प्रकार के जैव उर्वरक निकटतम कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) पर उपलब्ध होते हैं। इसके आलावा आजकल जैव उर्वरक ऑनलाइन साइट्स से भी ख़रीदे जा सकते हैं।

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