

बेल पेपर के कई नाम होते हैं स्वीट पेपर, ब्लॉकी पेपर,शिमला मिर्च, ब्लॉक मिर्च, इस फसल की उत्पत्ति मध्य और दक्षिण अमेरिका में हुई थी, यह फल विटामिन और खनिज से भरपुर होता हैं, जैसे विटामिन सी, बी- 6 के-1, ई, ए आदि से भरपूर होता है
खेती के तरीके: हम आप को ग्रीनहाउस परिस्थितियों में शिमला मिर्च (बेल मिर्च) की खेती के लिए सर्वोत्तम तरीको की जानकरी दे रहे हैं।
खेती के तरीके: हम आप को ग्रीनहाउस परिस्थितियों में शिमला मिर्च (बेल मिर्च) की खेती के लिए सर्वोत्तम तरीको की जानकरी दे रहे हैं।



पौधो का चयन
पौधो का चयन
पौधो का चयन अच्छी प्रतिष्ठित, विश्वासयोग्य नर्सरी से किया जाना चाहिए, और अच्छी तरह से विकसित ३० से ३५ दिन परिपक्व जड़ प्रणाली वाले पौधे रोपाई के लिए उपयुक्त होते है।


संकर किस्मे
संकर किस्मे
अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त उपयुक्त सेमिनिस किस्मो का चयन करें।

भूमि की तैयारी
भूमि की तैयारी
खेत की जमीन या नर्सरी तैयार करते समय २५-३० मीट्रिक टन अच्छी तरह से विघटित जैविक खाद (एफ वाई एम) और ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास, बेवरिया, पैक्लोमोसिस और वीएएम जैसे जैव नियंको का विश्वविद्यालयों के निर्देश अनुसार उपयोग करें, इसके आलावा प्रति एकड़/किग्रा १०० डीएपी, ५०किग्रा एमओपी, १०० किग्रा एसएसपी , २०० किग्रा नीम केक, ५० किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट, ५० किग्रा अमोनियम सल्फेट, ५० किग्रा बोरॉन / १० किग्रा बोरेक्स का उपयोग करें।


पौधो के बिच अंतर
पौधो के बिच अंतर
दो पंक्तियो के बिच ५० सेमी., पौधो के बिच ४० सेमी. का अंतर रखे, फसल के प्रबंधन के लिए पंक्तियों के बिच ६० से ८० सेमी. का अंतर रखें।


रोपण विधि
रोपण विधि
जुताई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी का ध्यान रखें, नर्सरी के अनुसार ज़िगज़ैग तरीके से नर्सरी की भूमि पर छेद करके रोपण किया जाना चाहिए, ध्यान रखे छेद बहुत गहराई तक नहीं होना चाहिए, आम तौर पर रोपण शाम के समय किया जाना चाहिए।


उर्वरक का प्रयोग
उर्वरक का प्रयोग


उर्वरक और टपक सिचाई का उपयोग मृदा की पोषक स्तिथि पर निर्भर करता हैं, फसल की उम्र के आधार पर निम्नलिखित उर्वरकों को अनुशंसित मात्रा में उपयोग किया जाना चाहिए। कैल्शियम नाइट्रेट (CN),पोटेशियम नाइट्रेट (१३ :००:४५ ) पोटेशियम मोनो फॉस्फेट (००:५२:३४), मैग्नीशियम सल्फेट, (MgSo4), सल्फेट ऑफ़ पोटाश , जिंक सल्फेट (ZnSo4), मैंगनेशीयम सल्फेट (MnSo4) कॉपर सल्फेट, अमोनियम मोलिब्डेट / सोडियम मोलिबडेट जैसे पोषक तत्वों को रोपाई के ६० दिनों के बाद अनुशंसित मात्रा में साप्ताहिक रूप से ३ बार उपयोग करना चाहिये,इस पोषक तत्वों के सटीक मात्रा का विभिन्न चरणों में उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार करें।


छंटाई
छंटाई
सामान्यतः रोपण के २५ - ३० दिनों बाद मजबूत तनो वाले पौधो का चयन करना चाहिए,पौधे में २ से ३ मजबूत टहनियों को रखे शेष हटा दें, छटाई निरंतर की जाने वाली क्रिया होती है, एक बार छटाई के १२ से १५ दिनों बाद पुनः छटाई करना चाहिए, पौधो की छटाई मौसम, पौधे के विकास और बीमारियों के प्रभाव पर भी निर्भर करती हैं, साधारणतः भारतीय किसान एक पौधे पर दो या तीन शाखाएं बनाये रखते है, जो की पौधे को लगाने की पद्धति, मौसम, पौधो को उम्र , रोगो के प्रभाव पर निर्भर होती है, पौधो की पहली छटाई के समय दो तनो का रखना पौधो और फलो के अच्छे विकास और आकर के लिए फायदेमंद रहता हैं।


पौधों को सहारा देना
पौधों को सहारा देना
प्रत्येक पौधे को रस्सी, बारीक़ तारो या पतले धागो से सहारा देना चाहिए, रस्सी का उपयोग ज़मीन से १५- २० सेमी ऊपर से देना चाहिए, रस्सी की लम्बाई का विशेष ध्यान रखे, और पौधो के तनो को रस्सी के साथ अधिक कस कर नहीं बांधना चाहिए, क्योकि पौधे की लम्बाई और फैलाव बढ़ने से पौधे क्षतिग्रस्त हो सकते है, रोपाई के ३०-३५ दिनों के बाद १५ दिनों में एक बार पौधो को दिए गए सहारे का निरीक्षण करना चाहिए और मजबूत सहारा देना चाहिए, सामान्यतः रस्सी (सुतली ) और चिमटी का प्रयोग सहारा देना के लिए किया जाता है।


फलों का चयन करना
फलों का चयन करना
विकृत फलो और पुष्प को आकर और विकास के आधार पर शुरुवाती चरणों में ही निकाल देना चाहिए, इसका चयन करना बहुत महवत्पूर्ण होता है, विकृत फलो को हटा देने से स्वस्थ फलो का विकास अच्छे से होता हैं।


कटाई
कटाई
फलो की तुड़ाई फसल लगाने के ८०-९० दिनों के बाद शुरू होती है, फलो की तुड़ाई में ६-७ दिनों का अंतर बनाए रखना चाहिए, सर्दियों के मौसम में ये अधिक हो सकता है। ७०-८० % तक फलो का रंग विकास के चरणों में परिवर्तित हो जातां है, परिवहन सुविधा के अनुसार फलो की तुड़ाई करें, और फलो की कटाई कैची की सहयता से करे, यदि किसान उचित परिस्तिथि में पौधो का व्यवस्थापन २५० दिनों तक करे, तो प्रति एकड़ ३० से ४० टन फसल ले सकते हैं।


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